Bharatiya Kisan Sangh

किशनगढ़/ अजमेर 25 फरवरी 2024: भारतीय किसान संघ के अखिल भारतीय संगठन मंत्री श्री दिनेश कुलकर्णी ने समापन सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि देश में जो वर्तमान दौर चल रहा है उसमें भारतीय किसान संघ को राष्ट्र हित के संवर्धन विचार को लेकर आगे बढ़ना होगा। सदस्यता अभियान पर अपनी बात रखते हुए श्री कुलकर्णी ने कहा कि एक लाख गांवों तक ग्रामसमिति का गठन कर एक करोड़ सदस्य बनाने का लक्ष्य लिया था। आज हम साठ प्रतिशत लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल हुए है। पूर्ण लक्ष्य प्राप्त करने के लिए दृढ़ संकल्प लेकर कार्यकर्ताओं को परिश्रम के साथ कार्य करने की जरूरत है। सदस्यता लक्ष्य प्राप्ति के बाद भारतीय किसान संघ को विश्व का सबसे बड़ा संगठन होने का गौरव प्राप्त होगा। भारतीय लोकतंत्र पर चर्चा करते हुए संगठन मंत्री श्री कुलकर्णी ने लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए राष्ट्र हित में मतदान कराने गांव गांव जनजागरण अभियान चलाने का आग्रह भी किया। इसके बाद प्रांत संगठन मंत्री परमानंद ने प्रतिनिधि सभा में व्यवस्था कार्य में लगे कार्यकर्ताओं का परिचय भी हुआ।

युवाओं व महिलाओं की सदस्यता बढ़ी
प्रतिनिधि सभा में सदस्यता अभियान की समीक्षा के दौरान जो आंकड़ा सामने आया है। सदस्यता मे युवा किसानों और महिला किसानों की सदस्यता में भारी बढ़ोतरी हुई है। इसके बढ़ने के पीछे भारतीय किसान संघ द्वारा संगठनात्मक, आंदोलनात्मक व रचनात्मक गतिविधियों को माना जा रहा है।

आयामों ने रखे अपने वृत्त
भारतीय किसान संघ में विभिन्न क्षेत्रों में अपने कार्य को बढ़ाने की दृष्टि से चौदह आयामों का गठन किया गया है। जिसमें महिला, गन्ना, प्रचार, जनजाति, रोजगार, बीज, एफ पी ओ, जल, हिमालयन, विपणन, जैविक, नारियल, ऊर्जा आयामों के माध्यम से ग्राम समिति तक पहुंच बढ़ाई जा रही है। इन आयामों के प्रमुखों ने आयाम की प्रगति व विस्तार कार्ययोजना का वृत्त रखा।

ये रहे उपस्थित
भारतीय किसान संघ की प्रतिनिधि सभा में देश भर से पैंतीस से अधिक प्रांतों से आए पंद्रह सौ प्रांत स्तर के पदाधिकारियों के साथ किसान संघ के अखिल भारतीय अध्यक्ष बद्री नारायण चौधरी, कार्यकारी अध्यक्ष व उपाध्यक्ष राम भरोसे वासोतिया, महामंत्री मोहिनी मोहन मिश्र, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ चितौड़ के प्रांत प्रचारक विजय आनंद, संगठन मंत्री दिनेश कुलकर्णी, उपाध्यक्ष भैयाराम मोर्य, पेरूमल जी, मंत्री बीना सतीश, बाबूभाई पटेल, साई रेड्डी, भारतीय एग्रो इकोनॉमिक रिसर्च सेंटर के अध्यक्ष प्रमोद चौधरी, प्रचार प्रमुख राघवेंद्र सिंह पटेल आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।

राघवेंद्र सिंह पटेल
अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख
भारतीय किसान संघ
9425357127

नई दिल्ली 13 फरवरी- भारतीय किसान संघ किसानों की उपज का लागत के आधार पर लाभकारी मूल्य की मांग को लेकर लगातार संघर्ष कर रहा है। देश की सरकारों के साथ संवाद कर किसानों के पक्ष को मजबूती से रखता आया है। जहां संवाद से रास्ता नहीं निकलता है तो आंदोलन भी करता है। उक्त बातें भारतीय किसान संघ के अखिल भारतीय महामंत्री मोहिनी मोहन मिश्र ने अपने जारी बयान में कही। उन्होंने कहा कि 19 दिसम्बर को दिल्ली के रामलीला मैदान में किसान गर्जना रैली के रूप में एक लाख किसानों का अनुषासित शांतिपूर्ण प्रदर्षन इसका उदाहरण है। देश भर से किसान दिल्ली में आये शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक तरीके से अपनी बात सरकार से कही और बिना किसी को परेशान किये वापिस लौट गये।

श्री मिश्र ने कहा कि जब राजनैतिक मंसा के साथ किसानों के कंधे का प्रयोग कुछ लोग अपनी राजनैतिक हित साधना के लिये करते है तो पीड़ा होती है। भारतीय किसान संघ का मानना है कि जब किसान के नाम पर राजनैतिक आंदोलन चलता है तो इसका नुकसान सिर्फ किसानों को होता है। विगत वर्षों में मंदसौर व दिल्ली में हुये आंदोलन इस बात के प्रमाण है। कहीं छैः तो कहीं आंकड़ा छै सौ तक भी पहंुचा है, जहां किसानों को अपनी जान गंवानी पड़ी। उनके मुद्दे व मांगे जस की तस हैं। इसलिये भारतीय किसान संघ का आग्रह है कि किसानों के नाम पर राजनैतिक चुनावी पैंतरावाजी बंद होनी चाहिए।

किसान हित में लड़ने वाले संगठन लगातार किसानों की समस्या निवारण के लिये लड़ रहे हैं। सरकार किसी की भी हो सामंजस्य से किसानों की समस्याओं का समाधान निकाल भी रहे हैं। लागत के आधार पर लाभकारी मूल्य किसान का हक है वह उसे मिलना ही चाहिये। आज बीज व बाजार किसानों की प्रमुख समस्या है, मंडी के अंदर हो या बाहर किसान के साथ बीज व बाजार में शोषण बंद होना चाहिये।

महामंत्री श्री मिश्र ने कहा कि जब राजनैतिक मंशा से चुनाव के दौरान किसान के नाम पर आंदोलन होते हैं तो आंदोलन के दौरान होने वाली हिंसा, अराजक माहौल, राष्ट्र की संपति का नुकसान होने से समाज में किसान के प्रति नकारात्मक भाव जन्म लेेता है। जिसका खामियाजा अपनी बेहतरी के लिये संघर्षरत किसान को चुकाना पड़ता है। इसलिये भारतीय किसान संघ हिंसक आंदोलन का समर्थन नहीं करता है। हमारा आग्रह है कि जिन लोगों को अपनी राजनैतिक महत्वाकांछा पूरी करनी हैं वो करें। लेकिन समाज में किसान के प्रति नकारात्मक भाव को पैदा न करें। हम पुनः दोहराते हैं कि लागत के आधार पर लाभकारी मूल्य किसान का हक है वह किसान को मिलना चाहिये।

हमारी मांगे है-
1.⁠ ⁠लागत के आधार पर लाभकारी मूल्य किसान का अधिकार है।
2.⁠ ⁠कृषि आदानों पर जीएसटी समाप्त की जाये।
3.⁠ ⁠किसान सम्मान निधि में बढ़ोतरी की जाये।
4.⁠ ⁠जहर नहीं जैविक चाहिये, जीएम बीज की अनुमति नहीं दी जाये।
5.⁠ ⁠बीज किसान का अधिकार है।
6.⁠ ⁠घोषित समर्थन मूल्य से बाजार भाव नीचे न जाए। इसको सरकार सुनिश्चित करे।

मोहिनी मोहन मिश्र
अखिल भारतीय महामंत्री, भारतीय किसान संघ

किसान शक्ति, नई दिल्ली,
दिनांक – 04.10.2021

– लखीमपुर घटना पर भारतीय किसान संघ की प्रतिक्रिया –

दिनांक 3 अक्टूबर 2021 को उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में जो घटना घटी, वह दुर्भाग्यपूर्ण है। घटना में लिप्त लोग किसान नही थे, विविध राजनैतिक दलों के थे, वामपंथी तरीकों से घटना को अंजाम दिया गया। लाठियों से पीट-पीटकर लोगों की निर्मम हत्या की गई, जो कम से कम किसान तो नहीं कर सकते।

कानून हाथ में लेना, सरेआम हत्याऐं कराना, ऐसा लगता है जैसे प्रोफेसनल लोगों ने, जल्लादों ने यह कार्य किया हो। इस घटना की जितनी निन्दा की जावे, कम है। इस प्रकार के कृत्यों में लिप्त लोगों को कठोरतम दण्ड दिया जाना चाहिए।

भारतीय किसान संघ मांग करता है कि इस जघन्य घटना की निष्पक्ष जांच जल्दी से जल्दी करके मृतकों के परिजनों को न्याय मिलें । भारतीय किसान संघ मृतक परिजनों के साथ संवेदना प्रकट करता है।

(महामंत्री)
भारतीय किसान संघ

नई दिल्ली, 24.05.2021

26 मई 2021 ‘काला दिवस’ का समर्थन नहीं: भारतीय किसान संघ

दिल्ली की सीमा पर आंदोलनरत किसान नेताओं द्वारा 26 मई 2021 को लोकतंत्र का काला दिवस घोषित किया गया है, इसका भारतीय किसान संघ विरोध करता है। गत 26 जनवरी जैसा भय, आतंक एवं डर पैदा करने की योजना दिखाई दे रही है। 26 मई का दिन चुनने के पीछे कारण कुछ भी रहा हो परन्तु देश के किसान इस बात से आक्रोश में है कि किसान के नाम को बदनाम करने का अधिकार इन स्वयंभू, तथाकथित किसान नेताओं को किसने दिया है। किसान शार्मिंदा है कि वह राष्ट्र विरोधी कार्यों, विलासितपूर्ण रहन-सहन, राष्ट्रीय मान बिंदुओं का अपमान, विदेशी फंड़िग, आतंकवादी गतिविधियों का समर्थन और इतनी बड़ी कोविड़ त्रासदी के समय भी इतना स्वार्थी बन सकता है, ऐसी छवि निर्माण करने का पाप इन लोगों ने किया है।

भारतीय किसान संघ ने इस आंदोलन के आरम्भ से कुछ समय बाद ही आशंका प्रकट की थी कि यह किसान का आंदोलन नही हैे, आंदोलन कुछ अराजक तत्वों के हाथों द्वारा संचालित है।

अप्रैल-मई माह में ही एक बंगाल के किसान की 24 वर्षीय पुत्री के साथ सामूहिक बलात्कार और अंत में उसकी हत्या की घटना जो दिल्ली बार्डर पर घटी और 10-15 दिन तक पुलिस से छुपाया गया ताकि सबूत नष्ट किये जा सके। जिसके सबूत नष्ट करने मेे नेतागण लिप्त पाये गये है। यह तो एक घटना है, जो बाहर आ गई वह भी लड़की के पिता द्वारा पुलिस केस दर्ज कराने के कारण, न जाने क्या-क्या घटनाएं/काण्ड यहां घटित हुए हंै, कई लोगों पर अपराधिक प्रकरण भी बने हैं। इससे भी आगे बढ़कर इन आंदोलनकारियों द्वारा बीच-बीच में आक्सीजन गैस टेंकर्स को रोकना, एम्बूलेंस मंे गंभीर रोगियों से बदसलूकी करना, एक-एक सप्ताह तक अलग-अलग झुण्ड आंदोलन स्थल पर बुलाना, वापस जाना, कोरोना की गाईडलाईन को नहीं मानना, हिसार मंे कोविड़ अस्पताल का विरोध करना जैसी अवांछनीय हरकतों के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना बीमारी के विस्तार में भी बड़ी भूमिका निभाई है। पंजाब में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा कोविड़ ग्रस्तों की सहायता के लिए रक्तदान शिविर का विरोध करके रक्तदान नहीं होने देना, इन सब कृत्यों को शांतिपूर्ण आंदोलन का हिस्सा तो नहीं कहा जा सकता। आंदोलन स्थल पर सेकड़ों किसानों की मौत भी हो चुकी है।

जिन 12 राजनैतिक दलों ने इस काले दिवस वाले कार्यक्रम के समर्थन की घोषणा की है, उनको भी यह स्पष्ट करना चाहिए कि क्या वे इस आंदोलन में घटित शर्मनाक, राष्ट्रविरोधी एवं अपराधिक घटनाओ का भी समर्थन करते है? देश का आम किसान जानना चाहता है कि लाचार किसानों के नाम को बदनाम करने का ठेका इन लोगों को किसने दे दिया।

इसलिए भारतीय किसान संघ आम जनता से निवेदन करना चाहता है कि इन हरकतों में देश के आम किसान को दोशी नहीं ठहराया जावे। देशभर के किसान संगठनों के कार्यकर्ता इस महामारी में अपने-अपने स्थलों पर ग्रामीणों में जन जागरण, भूखे-प्यासे गरीब की दैनिक आवष्यकता पूर्ति, औषधि-उपचार की व्यवस्था में लगा हुआ है।

यहां भारतीय किसान संघ केन्द्र सरकार का भी आहवान करता है कि केवल हिंसक आंदोलनकारियों के अलावा भी देशभर में किसानों के मध्य आंदोलनात्मक एवं रचनात्मक कार्य करने वाले अन्यान्य किसान संगठन और भी हैं, उनकी केन्द्र द्वारा अनदेखी कब तक की जायेगी, उनको बुलाकर आम किसान की चाहत एवं उससे जुड़ी कठिनाईयों पर क्यों नही वार्ता की जाती ?


बद्रीनारायण चौधरी
महामंत्री, भारतीय किसान संघ
09414048490

  1. प्रेसवार्ता
    तूर, मूंग और उड़द के आयात पर लगे हुए प्रतिबंधों को हटाते हुए वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा आयात की छूट दी गई है
    यह निर्णय देश के दलहन किसानों को हतोस्ताहित करने वाला

दलहन आयात खोलने एवम खाद दरों मे वृद्धि के निर्णय को तुरन्त वापस ले केंद्र सरकार: भारतीय किसान संघ की मांग

महामंत्री मा. श्री बद्री नारायण जी की  पत्रकार वार्ता

नई दिल्ली, दिनांक- 19 मई 2021

इस कोविड महामारी के समय खेती किसानों के संदर्भ में महत्वपूर्ण विषयों पर जैसे खाद की बढ़ी कीमतें, दालों की आयात से प्रतिबंध हटाना, KCC आदि के बारे में भारतीय किसान संघ का मंतव्य। 

भारतीय किसान संघ देशभर में जहां जितनी शक्ति है, उसे ग्रामीण क्षेत्रों में आम जन का सहयोग करने मनोबल बढ़ाने, जागृति निर्माण करने में लग गया है। हमारा कार्यकर्ता सामान्य समय में भी घर के काम के साथ साथ किसानों के रचनात्मक, संगठनात्मक एवं आंदोलनात्मक कार्यों में सक्रिय रहता है, तो ऐसे संकट के समय में अपने आपको और अपने परिवार को सुरक्षित रखते हुए अपने गांव के लिए सक्रिय नहीं हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। ग्रामीण क्षेत्रों में नेतृत्व की बड़ी भूमिका देखी जा सकती है, यदि 2-3 बंधु भी मिलकर किसी गांव में निकल पड़ते हैं, और वे भी जांचे परखे हुए अर्थात समाजसेवी लोग तो फिर गांव की सज्जन शक्ति सहयोग के लिए तत्पर देखी जा सकती है। आरम्भ में भय/डर दूर करने में मेहनत अधिक करनी पड़ी हैं, परंतु अंततः साथ तो लगना ही पड़ता है। हम अनुमान लगा सकते हैं कि लगभग 35-40 हजार गांवों में आत्मविश्वास जगाने एवं सरकार / चिकित्सकों के साथ तालमेल बनाकर कोरोना से ग्रस्त बंधुओं का सहयोग करने का यत्न कर पायेंगे। अब आज की प्रेसवार्ता के मुख्य बिंदुओं पर में आता हूँ।

श्री बद्रीनारायण चौधरी, महामंत्री, भारतीय किसान संघ

1. वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय की ओर से शनिवार 15 मई 2021 को भारत सरकार के गजट में प्रकाशित अधिसूचना की ओर ध्यानाकर्षित कराना चाहूंगा जिसमें तूर, मूंग और उड़द के आयात पर लगे हुए प्रतिबंधों को हटाते हुए वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा आयात की छूट दी गई है, उल्लेखनीय है कि ये सभी दलहन फसलें खरीफ में पैदा होने वाली है और खरीफ की फसल का बुवाई का समय सामने आ चुका है। ऐसे समय पर इस निर्णय का यह संदेश जाने वाला है कि इस बार खरीफ की फसल में देश के किसानों को तूर, मूंग और उड़द की फसलों की बुवाई नही करनी है क्योकि खरीफ की फसल का बुवाई का समय सामने आ चुका है।

ऐसे समय पर इस निर्णय का यह संदेश जाने वाला है कि इस बार खरीफ की फसल में देश के किसानों को तूर, मूंग और उड़द की फसलों की बुवाई नहीं करनी है क्योंकि आयातित दालों के कारण इनका पूरा मूल्य नही मिलेगा। सभी जिम्मेदार लोग दलहन व तिलहन में देश को आत्मनिर्भर बनाने की घोषणाएँ तो करते है परन्तु समय आने पर उचित निर्णय लेते हुए दिखाई नहीं देते है। दलहन में हम लगभग आत्मनिर्भर हुए हैं परन्तु वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा यह कदम दलहन किसानों को हतोस्ताहित करने वाला सिद्ध होगा। दालों का यह आयात आत्मनिर्भरता को समाप्त करेगा, जिसके लिए गत कुछ वर्षों के प्रयास बाद सफलता मिली है। वरना हम खाद्य तेलों की भांति ही दलहन के मामले में भी एक कुचक्र में फंस जायेंगे।

भारतीय किसान संघ का यह मानना है कि समस्या उत्पादन की नहीं है, वितरण की एवं नीति निर्धारण की अधिक है। इसलिए भारतीय किसान संघ मांग करता है कि इस निर्णय पर केन्द्र सरकार पुर्नविचार करें और आयात खोलने के निर्णय को तुरन्त वापस ले।

2. रासायनिक खाद की दरों में 1.5 गुणा वृद्धि IFFCO द्वारा वर्ष 2021-22 के लगते ही DAP की दरे 1200 रूपये (प्रति 50 किलो) बैग से 1900रू. बैग की जा चुकी ।

• मई माह में नई दरों के साथ बिक्री शुरू की जा चुकी, किसानों में भ्रांति पैदा हुई है, उर्वरक मंत्रालय ने घोषणा की है कि अभी ऐसे समय में निर्माता कम्पनियां बढ़ी दरों पर नहीं बेच सकती’ जबकि बाजार में नई दरों पर ही डीलर्स बेचने के लिए बैठे हैं, उनका कहना है कि जब हमें महंगा मिलता है तो हम कैसे कम पर बेचें ?
• इसलिए सरकार स्पष्ट घोषण करें, और स्पष्ट निर्देश जारी करे कि खादों का बेचान पुरानी कीमत पर ही हो ताकि भ्रांति पैदा करके किसानों का शोषण नहीं हो सके।

3. KCC कार्ड धारक किसानों को समय पर पुनर्भुगतान करने पर 3 प्रतिशत ब्याज अनुदान की छूट दी जाती है। परन्तु विलंब से घोषणा करने पर बैंकों द्वारा पूरा ब्याज वसूल लिया जाता है, जो छूट बाद में आने पर भी किसान को नहीं मिलती, इसलिए केन्द्र सरकार अप्रेल 2020 से ही आरम्भ हुई इस असामान्य परिस्थिति के समापन तक की अवधि को पुनर्भुगतान हेतु आगे बढ़ाने की घोषणा करे, ताकि बैंकों एवं किसानों में भ्रम निर्माण नहीं हो।

4. KCC कार्ड धारक किसी किसान की कोरोना के कारण मृत्यु होने की दशा में उसे KCC ऋण से मुक्त करने के निर्देश भी शीघ्र जारी किये जावें ।

बद्रीनारायण चौधरी,

महामंत्री,
भारतीय किसान संघ
मो. 9414048490

प्रेसवार्ता (BKS) 19-05-2021

 

“प्रस्तावित चक्का जाम पर – भारतीय किसान संघ का वक्तव्य”
6 फरवरी को घोषित चक्का जाम का भारतीय किसान संघ समर्थन नहीं करता है क्योंकि ।

1. करीब 70 दिनों से दिल्ली की सीमा पर जो यह आंदोलन चल रहा है पहले तो यह थोड़ा-थोड़ा राजनैतिक लगता था, अब वहां अधिकांश राजनैतिक दलों का और राजनैतिक नेताओं का जमावड़ा चल रहा है, इससे स्पष्ट हो गया है कि यह पूर्णतया राजनैतिक हथकंडा ही है।

2. पहले दिन से ही भारतीय किसान संघ ने ऐसा अंदेशा प्रकट किया था कि यह आंदोलन मंदसोर जैसा हिंसक रूप लेगा, संभवत 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के दिन जिन लोगों ने हिसंक होकर जंगा नाच किया, इसमें भारतीय किसान संघ की आशंका सही सिद्ध हुई। इसलिए भारतीय किसान संघ को 6 फरवरी को चक्का जाम में कोई अनहोनी नहीं हो जाे, इसकी आशंका है।

3. 26 जनवरी पर अपने राष्ट्रध्वज को अपमानित करना व सरेआम दिनदहाड़े इसको स्वीकरति देना, राष्ट्र विरोधी तत्व ही कर सकते है। ऐसा लगता है कि इस आंदोलन के अंदर पर्याप्त संख्या में अराष्ट्रीय तत्व सक्रिय हो चुके हैं। जो अपनी मजबूत पकड़ करने में भी सफल हो गये है। इसी कारण संसद में पारित कानूनों, माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का भी सम्मान नहीं करके लोकतंत्र विरोधी कार्य किसानों के नाम पर करवा रहे हैं।

4. आंदोलन के शुरूआत में ही कनाडा के राजनैतिक नेतृत्व का वक्तव्य, ब्रिटिश नेताओं के वक्तव्य और हाल ही में आये कुछ तथाकथित विदेशी कलाकारों के वक्तव्यों ने यह प्रमाणित कर दिया है कि इस आंदोलन के सूत्र विदेशों से संचालित है और भारत विरोधी ताकतों के द्वारा देश में अराजकता पैदा करने का खेल खेला जा रहा है।
इसलिए भारतीय किसान संघ/देश का सबसे बड़ा किसान संगठन, राष्ट्रवादी एवं गैर राजनैतिक होने के कारण एवं हिंसक, चक्का जाम और भूख हड़ताल जैसे कार्यों का नीतिगत समर्थन नहीं करता है। यह संगठन राष्ट्रहित की चौखट में ही किसान हित को देखकर चलता है।

अतः 6 फरवरी के चक्का जाम का हम समर्थन नहीं करते हैं। देश के आमजन विशेषकर किसान बंधुओं से आग्रह है कि वे 6 फरवरी के दिन संयम से काम लें और शांति स्थापना में ही सहयोगी बनें।

इसके साथ ही सभी किसान नेताओं से भी आशा की जाती है कि माननीय प्रधानमंत्री जी द्वारा घोषणा की गई है कि सरकार डेढ़ से दो वर्षों के लिए कानूनों को स्थगित करने के अपने प्रस्ताव पर अभी भी यथावत है, उसे स्वीकार करते हुए वार्ता हेतु सक्षम समिति गठन एवं वर्षों से लम्बित भारतीय किसान की नीतिगत समस्याओं पर समुचित निर्णय करवाने की ओर अग्रसर हों।

धन्यवाद।

बद्रीनारायण चौधरी
महामंत्री
भारतीय किसान संघ

Nirmala Budget

किसान शक्ति, नई दिल्ली

                                                                                                                      दिनांक- 01.02.2021

भारतीय किसान संघ की बजट पर प्रतिक्रिया

कृषि क्षेत्र के लिए यह दीर्घकालीन सोच रखकर घोषित बजट

Nirmala Budget

वित्त वर्ष 2021-22 के लिए घोषित  बजट यद्यपि असाधारण परिस्थितियों, कोरोना काल एवं विकट घड़ी का बजट है, तथपि कृषि क्षेत्र के लिए कहा जा सकता है कि यह दीर्घकालीन सोच रखकर घोषित बजट है। बजट में न्यूनतम समर्थन मूल्य एवं मण्डियों के दृढ़ीकरण की बात करके किसानों का भ्रम निवारण का प्रयास भी हुआ है। 

जैसा कि बजट घोशणा में वित्त मंत्री जी ने कहान्यूनतम समर्थन मूल्य सभी कृषि ऊपज का डेढ़ गुणा मिले, इसके लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य व्यवस्था में मूलभूत परिवर्तन किया जायेगा, साथ ही कृषि मण्डियों (APMC) के ढांचागत विकास फंण्ड की भी घोषणा की गई।

  1. कृषिगत सकारात्मक बिंदु जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति देगें – 
  • कृषि ऋण के लक्ष्य को बढ़ाकर 16.5 लाख करोड़ रूप्ये तक कर दिया है। 
  • आॅप्रेषन ग्रीन स्कीमके दायरे में खराब होने वाले 22 और उत्पाद शामिल होगें।
  • 1000 और मंण्डियों को एनएएम के अंतर्गत लाया जायेगा।
  •  APMC कृषि अवसंरचना कोश की सुविधा प्रदान की जाएगी, जिससे वे अपनी बुनियादी सुविधाओं मे वृद्वि कर सकेगें।
  • 5 मतस्य बंदरगाहकोच्चि, चेन्नई, विशाखापट्नम, पारादीप और पेटुआघाट आर्थिक क्रियाकलापों के हब्स के रूप में विकसित होगें। 
  • नदियों जलमार्गों के किनारे स्थित अंतर्देशीय मत्स्य बंदरगाहों पर और फिष लैंडिग सेंटर का भी विकास होगा।
  • ग्रामीण अवसंरचना विकास कोष को बढ़ाकर 40,000 करोड़ का प्रवाधान।
  • कपास पर 10 प्रतिशत सीमा शुल्क लगेगा।
  • कच्चे रेशम और रेसम सूत पर अब 15 प्रतिशत सीमा शुल्क।
  • सूक्ष्म सिचाई के लिए 5000 करोड़ राशि का आवंटन किया गया।
  • ग्रामीण क्षेत्र के लिए भी स्वास्थय सुविधाओं का विस्तार लम्बे समय से प्रतीक्षित था, जो स्वागत योग्य है। 
  • शोंध कार्य के लिए बजट प्रावधान मंे कृशि क्षेत्र के लिए शोंध हेतु बजट की मांग हम लम्बे समय से करते आये थे।  
  1. किसानों को बजट से और भी उपेक्षाएं थी, जो निम्न प्रकार है – 
  • कृषि उपकरण तथा आदानों पर जी.एस.टी. हटानी चाहिए।
  • कृषि ऋण को ब्याज मुक्त किया जाये।
  • किसान सम्मान निधि को बढ़ाया जाए।
  • सिंचाई के उपकरणों पर अनुदान बढ़ाया जाए।
  • न्यूनतम समर्थन मूल्य (MDP) व्यवस्था में यदि मूलभूत परिवर्तन सोचते हंै, तो वह स्पश्ट हो जाता तो समाधान होता, अब भी भ्रम की स्थिति बनी रह गई।
  • कृषि उपादान/आदानों की राषि सीधे किसानों के बैंक खातों (क्ठज्) में प्रति एकड़ कृषि भूमि आधारित पूर्ण रूप से लागू की जाए। किसान अपने हिसाब से उपादान खुले बाजार में खरीद लेगेें।
  • जैविक कृषि को बढ़ावा देने के लिए प्रति एकड़ अनुदान सीधे किसान (क्ठज्) को दिया जाए, जिससे वह गोबर खाद डालकर ही किसान खेती करेगा। रासायनिक उर्वरकों का उपयोग कम होगा या नहीं करेगा।
  • तिलहन उत्पादन में देष आत्मनिर्भर हो सकता था यदि खाद्य कच्चे तेल पर आयात शुल्क 27.5 प्रतिशत से घटाकर 15 प्रतिशत नहीं किया गया होता, बल्कि 27.5 को बढ़ाकर 40 प्रतिशत किया जाना चाहिए था। 

बजट में आश्वस्त किया गया है कि तीव्रतापूर्वक न्याय व्यवस्था की जायेगी, डीजल एवं पेट्रोल पर कृषि सेस से स्पश्ट होता है कि कृषि विकास के लिए निरन्तर एवं भावी स्थाई आमदनी कोष तैयार करने की योजना है। अंत में प्रधानमंत्री जी, कृषि मंत्री जी एवं वित्त मंत्री जी द्वारा आश्वस्त किया गया है कि यह ग्राम केन्द्रित बजट है, तो वर्षभर हमें यह पूछने का हक दे दिया हैं कि सिद्व करें, इसमें जो गर्भित संदेश है, वह भी पूरा किया जावे।

 

महामंत्री,

भारतीय किसान संघ

पूछेगा देश, आखिर क्यों?

  • 26 जनवरी 2021 को ट्रेक्टर रैली के लिए अड़ियल रूख अपनाया गया, आखिर क्यों?
  • बार-बार दिल्ली पुलिस द्वारा नकारने पर भी ट्रेक्टर परेड़ की अनुमति या धमकी का प्रयास, आखिर क्यों?
  • दुश्मन देशों को आनन्द देने वाली हरकतों का बार-बार प्रयास किया जाता है, आखिर कब तक?
  • कृषि कानूनों की आड़ में गणतंत्र का विरोध, बहुत कुछ मुखौटे हटा गया, परन्तु आगे क्या?
  • नेतृत्व विहीन भीड़ एकत्र कर दिल्ली विजय, लाल किला फतह, तिरंगे का अपमान अब और आगे क्या?
  • कौन लोग हैं जो चाहते है कि किसान का खून बहे, गोली चले, लाठियां चले, फिर गिद्व भोज हों, निजी एवं सार्वजनिक सम्पत्तियां नश्ट की जावें, विश्व के सामने भारत की छवि धूमिल की गई, महिला पुलिस पर जानवरों की तरह प्रहार हुए, इनके पीछे कौन है?
  • हल वाले हाथों में भाले-बरछियां पकडाई गई, तलवारें लहराई गई। आखिर किसके विरोध में?
  • इस अक्षम्य अपराध के लिए दायी पापियों को माफी मांगने पर क्षमादान दे दिया जावें, क्यों?
  • गत दो माह से नित्य शडयंत्रों के बावजूद, तथाकथित किसान नेताओं को ये लोग दिखाई नहीं दे रहे थे। आखिर क्यो?
  • जवानों को किसानों के बच्चे बतलाने वालों के द्वारा उन बच्चों पर ही ट्रेक्टर चढ़ाने, कुचलने का कुकृत्य किया जा रहा था, आखिर अब तो किसान नेता स्वीकार कर लेवें कि उनके पीछे कोई राष्ट्रद्रोही तत्व हैं, अब भी नही स्वीकार करेगें तो फिर कब?
  • दिल्ली पुलिस द्वारा बार-बार पाकिस्तानी टवीट्र हंेण्डल (308) ज्ञात होने पर सावधानी की चेतावनी देने के बावजूद किसान नेताओं के दम्भपूर्ण वक्तव्य आते रहें परन्तु अब?
  • भोले-भाले किसानों के कंधों पर पांव रखकर अपना कद बढ़ाने/एजेंडा लागू करने की खूब हो गई नेतागिरी, क्या देशभर के किसान से अब भी चाहिए सहयोग/सहानुभूति?
  • प्रश्न  तो खड़े होगें और सफाई भी दी जायेगी, क्या किसान के नाम पर लगे धब्बे को धोया जा सकेगा? अन्नदाता को आतंकी के बराबर बैठा दिया, आखिर कारण तो होगा, क्यो?
  • भारतीय किसान संघ, जून 2020 से ही कहता आया है कि इन कानूनों को संशोधित करें और न्यूनतम समर्थन मूल्य का कानून बने, परन्तु हम ऐसे नेतृत्व विहीन, हिंसक आंदोलन से दूर रहते है।  इस आंदोलन के नेतृत्त्व द्वारा जिस प्रकार मांगे बदलते गये और कानून वापसी पर आकर अड़ गये, तब स्पष्ट हो गया था कि हारे हुए राजनैतिक विपक्ष की हताषा, किसान नेताओं के बे्रनवाश और प्रसिद्वि के लोभ में नेता बनने के लालच में किसान से गद्यारी होने लगी है, तब कभी मीठी भाशा में  और कभी कड़वी भाषा में सावधान करने का प्रयास भी भारतीय किसान संघ द्वारा किया गया। परंतु धीरे-धीरे स्पष्ट होने लगा कि यह कथाकथित नेतृत्व कुछ ओर ही परिणाम चाहता है, समाधान नहीं। वार्ता के रास्ते बंद कर दिए, सर्वोच्च न्यायालय की कमेटी का बहिष्कार किया। फिर ट्रेक्टर परेड़ और आगे संसद मार्ग पर मार्च एवं संसद के घेराव की घोशणा, आखिर क्यों?
  • इन सभी इवेंन्टस से पता चलता है कि गरीब किसानों का हित इनकी योजना में नहीं है, इनकी दृष्टि तो आगामी चुनाव पर दिखाई देती है। परन्तु विश्वासघात किसान के साथ क्यांे?
  • खुली चेतावनी दी जाने लगी, धमकियां दी गई, किसान को जैेसे आतंकी के रूप में प्रस्तुत कर सभी सीमाऐं लांघी गई। लेकिन ट्रेक्टर परेड़ का परिणाम देखकर और भी अधिक आश्चर्य हुआ कि योजनाबद्व आये, दण्डे-राड़-तलवारों के साथ पुलिस की गाड़ियों के शीशेे तोड़ने, पत्थर एवं डंडे फेककर मारना, आक्रमक तेवर अख्तियार किया गया, आखिर क्यों? जबकि पुलिस ने संयम से कार्य लिया। परन्तु अब उन सभी का मुखौटा उतर गया, जो पीछे से रिमोट से सारा खेल खेल रहे थे। जवाब तो किसान नेताओं से पूछेगें, आखिर क्यों?
  • भारतीय किसान संघ, दिल्ली पुलिस के धैर्य एंव संयम के लिए साधुवाद देता है, परन्तु सरकार एवं इंटेलिजेंस एजेंसीज की कमजोरी कहें या आंदोलन को लम्बा खीचने की मजबूरी, देशवासियों की समझ में नहीं आयी, इसलिए अराजक तत्वों को हिंसक खेल खेलने की छूट की निन्दा भी करता है। इस अपराध में लिप्त तथाकथित नेताओं के अतीत की भी जांच हो ताकि दोबारा देष के किसानों के साथ खिलवाड़ करने का कोई दुस्साहस नहीं कर सके।
  • इन किसान नेताओं ने सरकार के साथ केवल वार्ता का अभिनय किया, निगाहें तो 2024 तक बैठकर लोकसभा चुनावों पर थी। सरकार का डेढ – दों वर्षो के लिए कानून स्थागित करनेे और बैठकर समाधान पर चर्चा का प्रस्ताव भी इन्होनें ठुकरा दिया, जो दुर्भाग्यपूर्ण था। अब हम केन्द्र सरकार से आग्रह करते हैं कि हमारी पुरानी मांग पर पुनः विचार करें और कृषि कानूनों में समुचित सुधार, न्यूनतम समर्थन मूल्य बाबत कानून एवं अन्य लंबित समस्याओं पर सार्थक समाधान हेतु सरकारी पक्षकार, किसान प्रतिनिधि, कृषि अर्थषास्त्री, वैज्ञानिक एवं तज्ञ तटस्थ लोगों की सक्षम समिति गठित की जाये ताकि किसान भी देश के साथ आत्मनिर्भर भारत का भागीदार बन सके।

                                देश के हम भंडार भरेगें,  लेकिन कीमत पूरी लेगें

कृषि सुधार से संबंधित तीन कानूनों को लेकर सरकार एवं किसान नेताओं के बीच लगभग 50 दिनों से चल रहें गतिरोध के बाद आज उच्चतम न्यायालय के द्वारा जो दो निर्णय दिए गये :-

  1. तीनों कानूनों पर स्थगन आदेश।
  2. कानूनों पर विचार करने के लिए समिति का गठन।

भारतीय किसान संघ माननीय न्यायालय के निर्णय का स्वागत एवं इस बात के लिए आभार व्यक्त करता है कि इस विकट घड़ी में किसान परिवार दिल्ली की सीमा पर पड़े है, उनको न्याय की उम्मीद जगाई है ताकि वे अपने घर लोट सकें।

निर्विवाद, तटस्थ एंव सभी पक्षकारों को प्रतिनिधित्व करने वाली समिति का माननीय न्यायालय ने पूर्व में जो संकेत दिया था, उस संतुलन का अभाव समिति में स्पष्ट दिखाई देता है।

माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा घोषित समिति सम्पूर्ण देश का प्रतिनिधित्व नहीं करती है। इसमें केवल उत्तर भारत के कुछ क्षेत्र तथा मध्य भारत का प्रतिनिधित्व हो रहा है। समिति में दक्षिण भारत, पूर्व भारत, उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, असम तथा सम्पूर्ण पूर्वोत्तर भारत छूट रहा है। उसी प्रकार से आई.सी.ए.आर. (ICAR) से विशेषज्ञ भी नहीं दिख रहे हैं। यह तीनों कानून देश के हर नागरिक को प्रभावित करने वाले है।

अतः हम माननीय उच्चतम न्यायालय से निवेदन करते है कि इस समिति में सम्पूर्ण भारत में कार्य करने वाले भारतीय किसान संघ जैसे पंजीकृत संगठनों के साथ देश के सभी भोगौलिक हिस्सों का प्रतिनिधित्व हो।

इस कानून से प्रभावित होने वाले घटकों जैसे उपभोक्ता, व्यापारी के संगठनों का भी इस समिति में होना आवश्यक है।

भारतीय किसान संघ भी इसमें पक्षकार था, जिसका कार्य, 30 लाख सदस्यता के साथ देशभर के 30 प्रांतों के 550 जिलों के 4000 तहसीलों और 50 हजार गावों तक फैला हुआ है।

अतः माननीय न्यायालय से प्रार्थना है कि देशभर के किसानों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक मात्र संघटन

होने के कारण न्यायालय द्वारा गठित समिति में भारतीय किसान संघ का प्रतिनिधि भी अवश्य होना चाहिए।