Bharatiya Kisan Sangh

Bhartiya Kisan Sangh (BKS) and the Coalition for a GM-Free India have taken strong objection to the Centre’s decision to allow GM soya meal for livestock feed.

While the BKS “condemned” and called the reason cited by the Ministry of Fisheries, Animal Husbandry and Dairying while granting permission to “import 15MT of soya deoiled cake obtained from GM soya seed for manufacturing of animal feed” as “not only ridiculous, but disgusting”, activists from the anti-GM coalition “condemned” the “no-objection certification” granted by the GEAC under the Ministry of Environment, Forest, and Climate Change, calling it “highly objectionable”.

The MoEFCC recently conveyed to the Department of Animal Husbandry and Dairying via a letter dated August 6 that “since soya de-oiled and crushed cake do not contain any living modified organism”, it has “no objection for import of soya cake or meal from environmental angle”, the Coalition for a GM-Free India said in its letter to Environment Minister Bhupendra Yadav

Calling the clearance “highly objectionable”, the group also accused the GEAC of “abdicating its responsibility on safety assessment of GM soy feed”.

“The EPA 1989 Rules for the manufacture, use, import, export, and storage of hazardous micro-organisms/genetically engineered organisms or cells are clearly applicable to not just genetically engineering organisms or living modified organisms, but also products and substances related to LMOs.

“The Rules refer to such products and substances in several clauses clearly, requiring the GEAC to perform safety assessment on products and substances derived from GMOs as well. The GEAC cannot and must not abdicate its responsibility for regulating to protect the environment, nature, and health, as given in the objective of the Rules,” the letter signed by Kavitha Kuruganti stated, urging Yadav to “reconsider the decision” and ensure that “GEAC performs its duty”.

The BKS “condemned” the decision, calling the reason for granting the permission “not only ridiculous, but disgusting”.

“Considering the pretext of permission, all the products where the living modified organism is directly not involved in any product will be permitted for import. If this is the case, then factually all the available products or by-products made up of using GM crops qualify for import.

“The BKS has time and again demanded that products and byproducts of agricultural commodities involving GM technology/event at any stage should not allowed, even for import, without a robust a policy guideline in place.

“It is a long-lasting demand of the BKS to form an inter-ministerial group to draft a policy for research, production, and use of GM commodities,” BKS general secretary Badri Narayan Chaudhary said in a letter to Atul Chaturvedi, Secretary, Ministry of Fisheries, Animal Husbandry and Dairying, and marked to Yadav, Agriculture Minister Narendra Singh Tomar and Minister of Fisheries, Animal Husbandry and Dairying Parshottam Rupala.

भारतीय किसान संघ तहसील आमला का तहसील सम्मेलन दिनांक 11 अगस्त 2021 को माता मंदिर आमला में संपन्न हुआ।

इस सम्मेलन में तहसील कार्यकारिणी का पुनर्गठन प्रांतीय कार्यकारिणी सदस्य श्री पुरुषोत्तम सरले, जिला अध्यक्ष श्री अशोक मलैया, जिला मंत्री मनोज नावँगे, जिला कोषाध्यक्ष लक्ष्मीनारायण मालवीय, जिला सदस्य जगदीश नारे ईश्वर पुन्डे उपस्थित रहे ।

सम्मेलन में तहसील अध्यक्ष राजू कापसे तहसील मंत्री संतोष यादव को नियुक्त किया गया।

उसके पश्चात आमला पुलिस थाना ग्राउंड वृक्षारोपण किया गया एवं उसके पश्चात तहसील कार्यालय पहुंचकर ज्ञापन दिया गया।
कार्यक्रम में लगभग 20 ग्राम समिति के कार्य करता उपस्थित रहे।

नई दिल्ली, 24.05.2021

26 मई 2021 ‘काला दिवस’ का समर्थन नहीं: भारतीय किसान संघ

दिल्ली की सीमा पर आंदोलनरत किसान नेताओं द्वारा 26 मई 2021 को लोकतंत्र का काला दिवस घोषित किया गया है, इसका भारतीय किसान संघ विरोध करता है। गत 26 जनवरी जैसा भय, आतंक एवं डर पैदा करने की योजना दिखाई दे रही है। 26 मई का दिन चुनने के पीछे कारण कुछ भी रहा हो परन्तु देश के किसान इस बात से आक्रोश में है कि किसान के नाम को बदनाम करने का अधिकार इन स्वयंभू, तथाकथित किसान नेताओं को किसने दिया है। किसान शार्मिंदा है कि वह राष्ट्र विरोधी कार्यों, विलासितपूर्ण रहन-सहन, राष्ट्रीय मान बिंदुओं का अपमान, विदेशी फंड़िग, आतंकवादी गतिविधियों का समर्थन और इतनी बड़ी कोविड़ त्रासदी के समय भी इतना स्वार्थी बन सकता है, ऐसी छवि निर्माण करने का पाप इन लोगों ने किया है।

भारतीय किसान संघ ने इस आंदोलन के आरम्भ से कुछ समय बाद ही आशंका प्रकट की थी कि यह किसान का आंदोलन नही हैे, आंदोलन कुछ अराजक तत्वों के हाथों द्वारा संचालित है।

अप्रैल-मई माह में ही एक बंगाल के किसान की 24 वर्षीय पुत्री के साथ सामूहिक बलात्कार और अंत में उसकी हत्या की घटना जो दिल्ली बार्डर पर घटी और 10-15 दिन तक पुलिस से छुपाया गया ताकि सबूत नष्ट किये जा सके। जिसके सबूत नष्ट करने मेे नेतागण लिप्त पाये गये है। यह तो एक घटना है, जो बाहर आ गई वह भी लड़की के पिता द्वारा पुलिस केस दर्ज कराने के कारण, न जाने क्या-क्या घटनाएं/काण्ड यहां घटित हुए हंै, कई लोगों पर अपराधिक प्रकरण भी बने हैं। इससे भी आगे बढ़कर इन आंदोलनकारियों द्वारा बीच-बीच में आक्सीजन गैस टेंकर्स को रोकना, एम्बूलेंस मंे गंभीर रोगियों से बदसलूकी करना, एक-एक सप्ताह तक अलग-अलग झुण्ड आंदोलन स्थल पर बुलाना, वापस जाना, कोरोना की गाईडलाईन को नहीं मानना, हिसार मंे कोविड़ अस्पताल का विरोध करना जैसी अवांछनीय हरकतों के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना बीमारी के विस्तार में भी बड़ी भूमिका निभाई है। पंजाब में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा कोविड़ ग्रस्तों की सहायता के लिए रक्तदान शिविर का विरोध करके रक्तदान नहीं होने देना, इन सब कृत्यों को शांतिपूर्ण आंदोलन का हिस्सा तो नहीं कहा जा सकता। आंदोलन स्थल पर सेकड़ों किसानों की मौत भी हो चुकी है।

जिन 12 राजनैतिक दलों ने इस काले दिवस वाले कार्यक्रम के समर्थन की घोषणा की है, उनको भी यह स्पष्ट करना चाहिए कि क्या वे इस आंदोलन में घटित शर्मनाक, राष्ट्रविरोधी एवं अपराधिक घटनाओ का भी समर्थन करते है? देश का आम किसान जानना चाहता है कि लाचार किसानों के नाम को बदनाम करने का ठेका इन लोगों को किसने दे दिया।

इसलिए भारतीय किसान संघ आम जनता से निवेदन करना चाहता है कि इन हरकतों में देश के आम किसान को दोशी नहीं ठहराया जावे। देशभर के किसान संगठनों के कार्यकर्ता इस महामारी में अपने-अपने स्थलों पर ग्रामीणों में जन जागरण, भूखे-प्यासे गरीब की दैनिक आवष्यकता पूर्ति, औषधि-उपचार की व्यवस्था में लगा हुआ है।

यहां भारतीय किसान संघ केन्द्र सरकार का भी आहवान करता है कि केवल हिंसक आंदोलनकारियों के अलावा भी देशभर में किसानों के मध्य आंदोलनात्मक एवं रचनात्मक कार्य करने वाले अन्यान्य किसान संगठन और भी हैं, उनकी केन्द्र द्वारा अनदेखी कब तक की जायेगी, उनको बुलाकर आम किसान की चाहत एवं उससे जुड़ी कठिनाईयों पर क्यों नही वार्ता की जाती ?


बद्रीनारायण चौधरी
महामंत्री, भारतीय किसान संघ
09414048490

  1. प्रेसवार्ता
    तूर, मूंग और उड़द के आयात पर लगे हुए प्रतिबंधों को हटाते हुए वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा आयात की छूट दी गई है
    यह निर्णय देश के दलहन किसानों को हतोस्ताहित करने वाला

दलहन आयात खोलने एवम खाद दरों मे वृद्धि के निर्णय को तुरन्त वापस ले केंद्र सरकार: भारतीय किसान संघ की मांग

महामंत्री मा. श्री बद्री नारायण जी की  पत्रकार वार्ता

नई दिल्ली, दिनांक- 19 मई 2021

इस कोविड महामारी के समय खेती किसानों के संदर्भ में महत्वपूर्ण विषयों पर जैसे खाद की बढ़ी कीमतें, दालों की आयात से प्रतिबंध हटाना, KCC आदि के बारे में भारतीय किसान संघ का मंतव्य। 

भारतीय किसान संघ देशभर में जहां जितनी शक्ति है, उसे ग्रामीण क्षेत्रों में आम जन का सहयोग करने मनोबल बढ़ाने, जागृति निर्माण करने में लग गया है। हमारा कार्यकर्ता सामान्य समय में भी घर के काम के साथ साथ किसानों के रचनात्मक, संगठनात्मक एवं आंदोलनात्मक कार्यों में सक्रिय रहता है, तो ऐसे संकट के समय में अपने आपको और अपने परिवार को सुरक्षित रखते हुए अपने गांव के लिए सक्रिय नहीं हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। ग्रामीण क्षेत्रों में नेतृत्व की बड़ी भूमिका देखी जा सकती है, यदि 2-3 बंधु भी मिलकर किसी गांव में निकल पड़ते हैं, और वे भी जांचे परखे हुए अर्थात समाजसेवी लोग तो फिर गांव की सज्जन शक्ति सहयोग के लिए तत्पर देखी जा सकती है। आरम्भ में भय/डर दूर करने में मेहनत अधिक करनी पड़ी हैं, परंतु अंततः साथ तो लगना ही पड़ता है। हम अनुमान लगा सकते हैं कि लगभग 35-40 हजार गांवों में आत्मविश्वास जगाने एवं सरकार / चिकित्सकों के साथ तालमेल बनाकर कोरोना से ग्रस्त बंधुओं का सहयोग करने का यत्न कर पायेंगे। अब आज की प्रेसवार्ता के मुख्य बिंदुओं पर में आता हूँ।

श्री बद्रीनारायण चौधरी, महामंत्री, भारतीय किसान संघ

1. वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय की ओर से शनिवार 15 मई 2021 को भारत सरकार के गजट में प्रकाशित अधिसूचना की ओर ध्यानाकर्षित कराना चाहूंगा जिसमें तूर, मूंग और उड़द के आयात पर लगे हुए प्रतिबंधों को हटाते हुए वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा आयात की छूट दी गई है, उल्लेखनीय है कि ये सभी दलहन फसलें खरीफ में पैदा होने वाली है और खरीफ की फसल का बुवाई का समय सामने आ चुका है। ऐसे समय पर इस निर्णय का यह संदेश जाने वाला है कि इस बार खरीफ की फसल में देश के किसानों को तूर, मूंग और उड़द की फसलों की बुवाई नही करनी है क्योकि खरीफ की फसल का बुवाई का समय सामने आ चुका है।

ऐसे समय पर इस निर्णय का यह संदेश जाने वाला है कि इस बार खरीफ की फसल में देश के किसानों को तूर, मूंग और उड़द की फसलों की बुवाई नहीं करनी है क्योंकि आयातित दालों के कारण इनका पूरा मूल्य नही मिलेगा। सभी जिम्मेदार लोग दलहन व तिलहन में देश को आत्मनिर्भर बनाने की घोषणाएँ तो करते है परन्तु समय आने पर उचित निर्णय लेते हुए दिखाई नहीं देते है। दलहन में हम लगभग आत्मनिर्भर हुए हैं परन्तु वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा यह कदम दलहन किसानों को हतोस्ताहित करने वाला सिद्ध होगा। दालों का यह आयात आत्मनिर्भरता को समाप्त करेगा, जिसके लिए गत कुछ वर्षों के प्रयास बाद सफलता मिली है। वरना हम खाद्य तेलों की भांति ही दलहन के मामले में भी एक कुचक्र में फंस जायेंगे।

भारतीय किसान संघ का यह मानना है कि समस्या उत्पादन की नहीं है, वितरण की एवं नीति निर्धारण की अधिक है। इसलिए भारतीय किसान संघ मांग करता है कि इस निर्णय पर केन्द्र सरकार पुर्नविचार करें और आयात खोलने के निर्णय को तुरन्त वापस ले।

2. रासायनिक खाद की दरों में 1.5 गुणा वृद्धि IFFCO द्वारा वर्ष 2021-22 के लगते ही DAP की दरे 1200 रूपये (प्रति 50 किलो) बैग से 1900रू. बैग की जा चुकी ।

• मई माह में नई दरों के साथ बिक्री शुरू की जा चुकी, किसानों में भ्रांति पैदा हुई है, उर्वरक मंत्रालय ने घोषणा की है कि अभी ऐसे समय में निर्माता कम्पनियां बढ़ी दरों पर नहीं बेच सकती’ जबकि बाजार में नई दरों पर ही डीलर्स बेचने के लिए बैठे हैं, उनका कहना है कि जब हमें महंगा मिलता है तो हम कैसे कम पर बेचें ?
• इसलिए सरकार स्पष्ट घोषण करें, और स्पष्ट निर्देश जारी करे कि खादों का बेचान पुरानी कीमत पर ही हो ताकि भ्रांति पैदा करके किसानों का शोषण नहीं हो सके।

3. KCC कार्ड धारक किसानों को समय पर पुनर्भुगतान करने पर 3 प्रतिशत ब्याज अनुदान की छूट दी जाती है। परन्तु विलंब से घोषणा करने पर बैंकों द्वारा पूरा ब्याज वसूल लिया जाता है, जो छूट बाद में आने पर भी किसान को नहीं मिलती, इसलिए केन्द्र सरकार अप्रेल 2020 से ही आरम्भ हुई इस असामान्य परिस्थिति के समापन तक की अवधि को पुनर्भुगतान हेतु आगे बढ़ाने की घोषणा करे, ताकि बैंकों एवं किसानों में भ्रम निर्माण नहीं हो।

4. KCC कार्ड धारक किसी किसान की कोरोना के कारण मृत्यु होने की दशा में उसे KCC ऋण से मुक्त करने के निर्देश भी शीघ्र जारी किये जावें ।

बद्रीनारायण चौधरी,

महामंत्री,
भारतीय किसान संघ
मो. 9414048490

प्रेसवार्ता (BKS) 19-05-2021

 

राज्य के किसानों को स्वावलंबी बनाने में जुटा भाकिसं, असम

कृष्ण कांत बोरा ,
भारतीय किसान संघ, असम
एक ओर जहां देश के कुछ किसान संगठन नये कृषि कानून को लेकर सरकार को कठघरे में खड़ा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर भारतीय किसान संघ (भाकिसं), की असम इकाई किसानों को स्वावलंबी और आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई तरह के कदम उठाते हुए किसानों की मदद कर रही है। भाकिसं, असम किसानों को आधुनिक खेती करने के लिए जहां प्रेरित कर रहा है, वहीं बेहतर खाद, बीज, सरकारी सहायता का बेहतर लाभ उठाने, कृषि उत्पादों को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बेचने के लिए प्रोत्साहित कर उनकी आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने का प्रयास कर रहे हैं।
इस कड़ी में भाकिसं, असम द्वारा राज्य के आठ जिलों के किसानों को “मिशन टू एक्सप्लोर स्मार्ट एग्री” के तहत गुवाहाटी का भ्रमण कार्यक्रम आयोजित किया गया है। यह कार्यक्रम गत 19 मार्च से आरंभ हुआ है। इसका समापन 27 मार्च को होगा। चयनित जिलों में मुख्य रूप से बंगाईगांव, कामरूप (ग्रामीण), पश्चिम कार्बी आंग्लांग, शोणितपुर, नगांव, मोरीगांव, नलबारी, बरपेटा शामिल हैं।
भाकिसं, असम के प्रदेश अध्यक्ष कुरुसार तिमुंग ने सोमवार को हिन्दुस्थान समाचार के साथ बीतचीत करते हुए कहा कि “मिशन टू एक्सप्लोर स्मार्ट एग्री” के तहत पहली बार बेहद पिछले हुए ग्रामीण इलाकों के किसानों को आधुनिक कृषि को समझने का मौका मुहैया कराया जा रहा है। उन्होंने बताया कि, औसत प्रत्येक जिले से कम से कम 10 गांवों के किसानों को गुवाहाटी का भ्रमण कराया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि कुछ जिलों जैसे पश्चिम कार्बी आंग्लांग जिला के ऐसे इलाकों के किसान हैं जिन्हें पहली बार गुवाहाटी पहुंचने का अवसर मिला और ऐसे कार्यक्रम का हिस्सा बन पाए। उन्होंने बताया कि किसानों के भ्रमण में स्थानीय आईसीएआर के अंतर्गत संचालित केंद्रीय वृक्षारोपण फसल अनुसंधान संस्थान (सीपीसीआरआई) नामक संस्था का भरपूर सहयोग मिला है।
उन्होंने बताया कि सीपीसीआरआई के कृषि वैज्ञानिकों ने जो शोध कार्य किया है, उसके बारे में किसानों को विस्तार से जानकारी देते हुए उसका लाभ उठाने का आह्वान किया। साथ ही वैज्ञानिकों ने अपने शोध क्षेत्र में तैयार विभिन्न प्रकार के उत्पादों जैसे नारियल, तामुल, दालचीनी, काली मिर्च, चॉकलेट समेत अन्य खेती एक साथ वैज्ञानिक तरीके से कैसे कर सकते हैं, इसके बारे में प्रायोगिक तौर पर समझाया। वैज्ञानिकों ने किसानों की आय बढ़ाने के लिए चॉकलेट की खेती कैसे की जाए, इस बारे में भी विस्तार से बताया।
वैज्ञानिकों ने तामुल के पत्ते का उपयोग करते हुए किस तरह से केचुआ खाद तैयार की जा सकती है, उस पर भी व्यावहारिक रूप से प्रकाश डाला। किसानों ने वैज्ञानिकों के सुझाओं पर अमल करने का आश्वासन दिया।
इस दौरान पश्चिम कार्बी आंग्लांग की एक महिला किसान कुमारी निलम चौधरी ने अपने अनुभव को साझा करते हुए कहा कि इस तरह का प्रोत्साहन मिलने से हमें नयी तकनीक और नयी खेती करने का लाभ मिलता है, जिससे हमारी आय में वृद्धि होगी। वहीं दूसरी ओर बंगाईगांव के एक युवा किसान तपन दास ने बताया कि वैज्ञानिक तरीके से की जाने वाली खेती को हम गांव-गांव तक पहुंचाएंगे, जिससे किसानों की आय को दोगुनी की जा सके। साथ ही उन्होंने कहा, एक ही जमीन पर पांच प्रकार की खैती कैसे की जा सकती है, इसको लेकर भी किसानों के बीच जागरूकता फैलाने की कोशिश करेंगे।
सीपीसीआरआई के एक वैज्ञानिक डॉ अल्पना दास ने कहा कि भाकिसं, असम द्वारा खेती को लेकर जो मुहिम चलाया गया है, वह किसान और वैज्ञानिक दोनों के लिए काफी लाभप्रद है। उन्होंने साथ ही कहा कि सही अर्थों में किसान विज्ञान से काफी दूर हैं। उन्हें साथ लाए बिना किसानों को भला नहीं हो सकता है। इस तरह के कार्यक्रम किसानों के लिए काफी सहायक सिद्ध होंगे।
Kisan Sangh Padayatra Nizamabad Cooperative Sugar Factory

Nizamabad: Demanding that the State government either revive the Nizamabad Cooperative Sugar Factory (NCSF) or hand it over to the Farmers Producers Organisation (FPO), shareholders of the company launched a padayatra from Thirmanpally village, on Monday.

Kisan Sangh Padayatra Nizamabad Cooperative Sugar Factory

The Padayatra, led by NCSF protection committee chairman K Sai Reddy, will cover 90 villages spread across eight mandals and conclude in front of the Nizamabad Collector’s Office on April 12. A massive public meeting will also be organised on the same day. Bharatiya Kisan Sangh (BKS) national general secretary Mohini Misra and leaders of various farmers’ associations were present during the padayatra launch.

Speaking on the occasion, K Sai Reddy demanded that the government take a final decision on the NCSF immediately. “Either the government should take steps to revive the company, or hand it over to the shareholders-promoted FPO,” he said. He also recalled how the company workers, during the TDP regime, prevented the then State government from privatising the factory. NCSF has a total of 350 shareholders and all of them are in support of the protest, he added.

Detail background

Factory (NCSF) was established in the year 1962 and in 1964 crushing was started. Till now we have earned 2 crores 85 lakhs of shares with the help of 23,216 farmers. 117 Villages and 1000 members of employees and 10,000 Farmer labourers were survived using this factory.

Till 1996 NCSF was in Profit. At that time government held by Sri Nara Chandrababu Naidu Garu of TDP (Telugu Desam Party) has issued a GO to privatize 12 Sugar factories in the cooperative sector in the united state of Andhra Pradesh.

Bharatiya Kisan Sangh filed an appeal in the High court and won against that privatization GO.

Against Government Privatization, on Nizamabad Cooperative Sugar Factory area 2001 and 2003 Sri SayaReddy Kondela went to the court and won the Battle. From 2004 onwards congress Government held by Sri Y.S Rajashekhar Reddy ran the factory till 2008.

Hereafter the Person in charge district collector and the Minister during that period wanted to close the factory. In 2014 on June 2nd Telangana state was formed. At the time of the elections TRS party chief and present CM Sri. K., Chandra Shekar Rao Garu gave a promise if he could win the 2014 elections to run any of the Cooperative sugar factories which are established in Telangana.

CM did not keep his promise and thereafter Bharatiya Kisan Sangh and NCSF Parirakshana Committee chairman Sri SayaReddy Kondela done many demonstrations and Darnas against Government. As any of the action did not take by the Government and didn’t agree to give the factory to the shareholders Sri SayaReddy Kondela has started a “Padayatra” from 15-03-2021 to 12-04-2021.

The program is to visit 90 Villages in 29 days Mobilize the farmers and enhance the use of the factory. The main Motive of the Programmer is to benefit the 500 members employment for the Farmers children and to give life to 5000 families by producing the sugarcane crop.

The Padayatra was started by Sri SayaReddy Kondela and the chief Guest was Sri Mohini Mohan Mishra (Bharatiya Kisan Sangh, All India secretary) on 15-03-2021 and Sri Raja Reddy (Bharatiya Kisan Sangh state General secretary). The Padayatra will be completed on 12-04-2021 at the Collector office Nizamabad by addressing a Public meeting.

With inputs from Bharatiya Kisan Sangh and Newindianexpress.com

“प्रस्तावित चक्का जाम पर – भारतीय किसान संघ का वक्तव्य”
6 फरवरी को घोषित चक्का जाम का भारतीय किसान संघ समर्थन नहीं करता है क्योंकि ।

1. करीब 70 दिनों से दिल्ली की सीमा पर जो यह आंदोलन चल रहा है पहले तो यह थोड़ा-थोड़ा राजनैतिक लगता था, अब वहां अधिकांश राजनैतिक दलों का और राजनैतिक नेताओं का जमावड़ा चल रहा है, इससे स्पष्ट हो गया है कि यह पूर्णतया राजनैतिक हथकंडा ही है।

2. पहले दिन से ही भारतीय किसान संघ ने ऐसा अंदेशा प्रकट किया था कि यह आंदोलन मंदसोर जैसा हिंसक रूप लेगा, संभवत 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के दिन जिन लोगों ने हिसंक होकर जंगा नाच किया, इसमें भारतीय किसान संघ की आशंका सही सिद्ध हुई। इसलिए भारतीय किसान संघ को 6 फरवरी को चक्का जाम में कोई अनहोनी नहीं हो जाे, इसकी आशंका है।

3. 26 जनवरी पर अपने राष्ट्रध्वज को अपमानित करना व सरेआम दिनदहाड़े इसको स्वीकरति देना, राष्ट्र विरोधी तत्व ही कर सकते है। ऐसा लगता है कि इस आंदोलन के अंदर पर्याप्त संख्या में अराष्ट्रीय तत्व सक्रिय हो चुके हैं। जो अपनी मजबूत पकड़ करने में भी सफल हो गये है। इसी कारण संसद में पारित कानूनों, माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का भी सम्मान नहीं करके लोकतंत्र विरोधी कार्य किसानों के नाम पर करवा रहे हैं।

4. आंदोलन के शुरूआत में ही कनाडा के राजनैतिक नेतृत्व का वक्तव्य, ब्रिटिश नेताओं के वक्तव्य और हाल ही में आये कुछ तथाकथित विदेशी कलाकारों के वक्तव्यों ने यह प्रमाणित कर दिया है कि इस आंदोलन के सूत्र विदेशों से संचालित है और भारत विरोधी ताकतों के द्वारा देश में अराजकता पैदा करने का खेल खेला जा रहा है।
इसलिए भारतीय किसान संघ/देश का सबसे बड़ा किसान संगठन, राष्ट्रवादी एवं गैर राजनैतिक होने के कारण एवं हिंसक, चक्का जाम और भूख हड़ताल जैसे कार्यों का नीतिगत समर्थन नहीं करता है। यह संगठन राष्ट्रहित की चौखट में ही किसान हित को देखकर चलता है।

अतः 6 फरवरी के चक्का जाम का हम समर्थन नहीं करते हैं। देश के आमजन विशेषकर किसान बंधुओं से आग्रह है कि वे 6 फरवरी के दिन संयम से काम लें और शांति स्थापना में ही सहयोगी बनें।

इसके साथ ही सभी किसान नेताओं से भी आशा की जाती है कि माननीय प्रधानमंत्री जी द्वारा घोषणा की गई है कि सरकार डेढ़ से दो वर्षों के लिए कानूनों को स्थगित करने के अपने प्रस्ताव पर अभी भी यथावत है, उसे स्वीकार करते हुए वार्ता हेतु सक्षम समिति गठन एवं वर्षों से लम्बित भारतीय किसान की नीतिगत समस्याओं पर समुचित निर्णय करवाने की ओर अग्रसर हों।

धन्यवाद।

बद्रीनारायण चौधरी
महामंत्री
भारतीय किसान संघ

Nirmala Budget

किसान शक्ति, नई दिल्ली

                                                                                                                      दिनांक- 01.02.2021

भारतीय किसान संघ की बजट पर प्रतिक्रिया

कृषि क्षेत्र के लिए यह दीर्घकालीन सोच रखकर घोषित बजट

Nirmala Budget

वित्त वर्ष 2021-22 के लिए घोषित  बजट यद्यपि असाधारण परिस्थितियों, कोरोना काल एवं विकट घड़ी का बजट है, तथपि कृषि क्षेत्र के लिए कहा जा सकता है कि यह दीर्घकालीन सोच रखकर घोषित बजट है। बजट में न्यूनतम समर्थन मूल्य एवं मण्डियों के दृढ़ीकरण की बात करके किसानों का भ्रम निवारण का प्रयास भी हुआ है। 

जैसा कि बजट घोशणा में वित्त मंत्री जी ने कहान्यूनतम समर्थन मूल्य सभी कृषि ऊपज का डेढ़ गुणा मिले, इसके लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य व्यवस्था में मूलभूत परिवर्तन किया जायेगा, साथ ही कृषि मण्डियों (APMC) के ढांचागत विकास फंण्ड की भी घोषणा की गई।

  1. कृषिगत सकारात्मक बिंदु जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति देगें – 
  • कृषि ऋण के लक्ष्य को बढ़ाकर 16.5 लाख करोड़ रूप्ये तक कर दिया है। 
  • आॅप्रेषन ग्रीन स्कीमके दायरे में खराब होने वाले 22 और उत्पाद शामिल होगें।
  • 1000 और मंण्डियों को एनएएम के अंतर्गत लाया जायेगा।
  •  APMC कृषि अवसंरचना कोश की सुविधा प्रदान की जाएगी, जिससे वे अपनी बुनियादी सुविधाओं मे वृद्वि कर सकेगें।
  • 5 मतस्य बंदरगाहकोच्चि, चेन्नई, विशाखापट्नम, पारादीप और पेटुआघाट आर्थिक क्रियाकलापों के हब्स के रूप में विकसित होगें। 
  • नदियों जलमार्गों के किनारे स्थित अंतर्देशीय मत्स्य बंदरगाहों पर और फिष लैंडिग सेंटर का भी विकास होगा।
  • ग्रामीण अवसंरचना विकास कोष को बढ़ाकर 40,000 करोड़ का प्रवाधान।
  • कपास पर 10 प्रतिशत सीमा शुल्क लगेगा।
  • कच्चे रेशम और रेसम सूत पर अब 15 प्रतिशत सीमा शुल्क।
  • सूक्ष्म सिचाई के लिए 5000 करोड़ राशि का आवंटन किया गया।
  • ग्रामीण क्षेत्र के लिए भी स्वास्थय सुविधाओं का विस्तार लम्बे समय से प्रतीक्षित था, जो स्वागत योग्य है। 
  • शोंध कार्य के लिए बजट प्रावधान मंे कृशि क्षेत्र के लिए शोंध हेतु बजट की मांग हम लम्बे समय से करते आये थे।  
  1. किसानों को बजट से और भी उपेक्षाएं थी, जो निम्न प्रकार है – 
  • कृषि उपकरण तथा आदानों पर जी.एस.टी. हटानी चाहिए।
  • कृषि ऋण को ब्याज मुक्त किया जाये।
  • किसान सम्मान निधि को बढ़ाया जाए।
  • सिंचाई के उपकरणों पर अनुदान बढ़ाया जाए।
  • न्यूनतम समर्थन मूल्य (MDP) व्यवस्था में यदि मूलभूत परिवर्तन सोचते हंै, तो वह स्पश्ट हो जाता तो समाधान होता, अब भी भ्रम की स्थिति बनी रह गई।
  • कृषि उपादान/आदानों की राषि सीधे किसानों के बैंक खातों (क्ठज्) में प्रति एकड़ कृषि भूमि आधारित पूर्ण रूप से लागू की जाए। किसान अपने हिसाब से उपादान खुले बाजार में खरीद लेगेें।
  • जैविक कृषि को बढ़ावा देने के लिए प्रति एकड़ अनुदान सीधे किसान (क्ठज्) को दिया जाए, जिससे वह गोबर खाद डालकर ही किसान खेती करेगा। रासायनिक उर्वरकों का उपयोग कम होगा या नहीं करेगा।
  • तिलहन उत्पादन में देष आत्मनिर्भर हो सकता था यदि खाद्य कच्चे तेल पर आयात शुल्क 27.5 प्रतिशत से घटाकर 15 प्रतिशत नहीं किया गया होता, बल्कि 27.5 को बढ़ाकर 40 प्रतिशत किया जाना चाहिए था। 

बजट में आश्वस्त किया गया है कि तीव्रतापूर्वक न्याय व्यवस्था की जायेगी, डीजल एवं पेट्रोल पर कृषि सेस से स्पश्ट होता है कि कृषि विकास के लिए निरन्तर एवं भावी स्थाई आमदनी कोष तैयार करने की योजना है। अंत में प्रधानमंत्री जी, कृषि मंत्री जी एवं वित्त मंत्री जी द्वारा आश्वस्त किया गया है कि यह ग्राम केन्द्रित बजट है, तो वर्षभर हमें यह पूछने का हक दे दिया हैं कि सिद्व करें, इसमें जो गर्भित संदेश है, वह भी पूरा किया जावे।

 

महामंत्री,

भारतीय किसान संघ

पूछेगा देश, आखिर क्यों?

  • 26 जनवरी 2021 को ट्रेक्टर रैली के लिए अड़ियल रूख अपनाया गया, आखिर क्यों?
  • बार-बार दिल्ली पुलिस द्वारा नकारने पर भी ट्रेक्टर परेड़ की अनुमति या धमकी का प्रयास, आखिर क्यों?
  • दुश्मन देशों को आनन्द देने वाली हरकतों का बार-बार प्रयास किया जाता है, आखिर कब तक?
  • कृषि कानूनों की आड़ में गणतंत्र का विरोध, बहुत कुछ मुखौटे हटा गया, परन्तु आगे क्या?
  • नेतृत्व विहीन भीड़ एकत्र कर दिल्ली विजय, लाल किला फतह, तिरंगे का अपमान अब और आगे क्या?
  • कौन लोग हैं जो चाहते है कि किसान का खून बहे, गोली चले, लाठियां चले, फिर गिद्व भोज हों, निजी एवं सार्वजनिक सम्पत्तियां नश्ट की जावें, विश्व के सामने भारत की छवि धूमिल की गई, महिला पुलिस पर जानवरों की तरह प्रहार हुए, इनके पीछे कौन है?
  • हल वाले हाथों में भाले-बरछियां पकडाई गई, तलवारें लहराई गई। आखिर किसके विरोध में?
  • इस अक्षम्य अपराध के लिए दायी पापियों को माफी मांगने पर क्षमादान दे दिया जावें, क्यों?
  • गत दो माह से नित्य शडयंत्रों के बावजूद, तथाकथित किसान नेताओं को ये लोग दिखाई नहीं दे रहे थे। आखिर क्यो?
  • जवानों को किसानों के बच्चे बतलाने वालों के द्वारा उन बच्चों पर ही ट्रेक्टर चढ़ाने, कुचलने का कुकृत्य किया जा रहा था, आखिर अब तो किसान नेता स्वीकार कर लेवें कि उनके पीछे कोई राष्ट्रद्रोही तत्व हैं, अब भी नही स्वीकार करेगें तो फिर कब?
  • दिल्ली पुलिस द्वारा बार-बार पाकिस्तानी टवीट्र हंेण्डल (308) ज्ञात होने पर सावधानी की चेतावनी देने के बावजूद किसान नेताओं के दम्भपूर्ण वक्तव्य आते रहें परन्तु अब?
  • भोले-भाले किसानों के कंधों पर पांव रखकर अपना कद बढ़ाने/एजेंडा लागू करने की खूब हो गई नेतागिरी, क्या देशभर के किसान से अब भी चाहिए सहयोग/सहानुभूति?
  • प्रश्न  तो खड़े होगें और सफाई भी दी जायेगी, क्या किसान के नाम पर लगे धब्बे को धोया जा सकेगा? अन्नदाता को आतंकी के बराबर बैठा दिया, आखिर कारण तो होगा, क्यो?
  • भारतीय किसान संघ, जून 2020 से ही कहता आया है कि इन कानूनों को संशोधित करें और न्यूनतम समर्थन मूल्य का कानून बने, परन्तु हम ऐसे नेतृत्व विहीन, हिंसक आंदोलन से दूर रहते है।  इस आंदोलन के नेतृत्त्व द्वारा जिस प्रकार मांगे बदलते गये और कानून वापसी पर आकर अड़ गये, तब स्पष्ट हो गया था कि हारे हुए राजनैतिक विपक्ष की हताषा, किसान नेताओं के बे्रनवाश और प्रसिद्वि के लोभ में नेता बनने के लालच में किसान से गद्यारी होने लगी है, तब कभी मीठी भाशा में  और कभी कड़वी भाषा में सावधान करने का प्रयास भी भारतीय किसान संघ द्वारा किया गया। परंतु धीरे-धीरे स्पष्ट होने लगा कि यह कथाकथित नेतृत्व कुछ ओर ही परिणाम चाहता है, समाधान नहीं। वार्ता के रास्ते बंद कर दिए, सर्वोच्च न्यायालय की कमेटी का बहिष्कार किया। फिर ट्रेक्टर परेड़ और आगे संसद मार्ग पर मार्च एवं संसद के घेराव की घोशणा, आखिर क्यों?
  • इन सभी इवेंन्टस से पता चलता है कि गरीब किसानों का हित इनकी योजना में नहीं है, इनकी दृष्टि तो आगामी चुनाव पर दिखाई देती है। परन्तु विश्वासघात किसान के साथ क्यांे?
  • खुली चेतावनी दी जाने लगी, धमकियां दी गई, किसान को जैेसे आतंकी के रूप में प्रस्तुत कर सभी सीमाऐं लांघी गई। लेकिन ट्रेक्टर परेड़ का परिणाम देखकर और भी अधिक आश्चर्य हुआ कि योजनाबद्व आये, दण्डे-राड़-तलवारों के साथ पुलिस की गाड़ियों के शीशेे तोड़ने, पत्थर एवं डंडे फेककर मारना, आक्रमक तेवर अख्तियार किया गया, आखिर क्यों? जबकि पुलिस ने संयम से कार्य लिया। परन्तु अब उन सभी का मुखौटा उतर गया, जो पीछे से रिमोट से सारा खेल खेल रहे थे। जवाब तो किसान नेताओं से पूछेगें, आखिर क्यों?
  • भारतीय किसान संघ, दिल्ली पुलिस के धैर्य एंव संयम के लिए साधुवाद देता है, परन्तु सरकार एवं इंटेलिजेंस एजेंसीज की कमजोरी कहें या आंदोलन को लम्बा खीचने की मजबूरी, देशवासियों की समझ में नहीं आयी, इसलिए अराजक तत्वों को हिंसक खेल खेलने की छूट की निन्दा भी करता है। इस अपराध में लिप्त तथाकथित नेताओं के अतीत की भी जांच हो ताकि दोबारा देष के किसानों के साथ खिलवाड़ करने का कोई दुस्साहस नहीं कर सके।
  • इन किसान नेताओं ने सरकार के साथ केवल वार्ता का अभिनय किया, निगाहें तो 2024 तक बैठकर लोकसभा चुनावों पर थी। सरकार का डेढ – दों वर्षो के लिए कानून स्थागित करनेे और बैठकर समाधान पर चर्चा का प्रस्ताव भी इन्होनें ठुकरा दिया, जो दुर्भाग्यपूर्ण था। अब हम केन्द्र सरकार से आग्रह करते हैं कि हमारी पुरानी मांग पर पुनः विचार करें और कृषि कानूनों में समुचित सुधार, न्यूनतम समर्थन मूल्य बाबत कानून एवं अन्य लंबित समस्याओं पर सार्थक समाधान हेतु सरकारी पक्षकार, किसान प्रतिनिधि, कृषि अर्थषास्त्री, वैज्ञानिक एवं तज्ञ तटस्थ लोगों की सक्षम समिति गठित की जाये ताकि किसान भी देश के साथ आत्मनिर्भर भारत का भागीदार बन सके।

                                देश के हम भंडार भरेगें,  लेकिन कीमत पूरी लेगें