Bharatiya Kisan Sangh

नई दिल्ली, 24.05.2021

26 मई 2021 ‘काला दिवस’ का समर्थन नहीं: भारतीय किसान संघ

दिल्ली की सीमा पर आंदोलनरत किसान नेताओं द्वारा 26 मई 2021 को लोकतंत्र का काला दिवस घोषित किया गया है, इसका भारतीय किसान संघ विरोध करता है। गत 26 जनवरी जैसा भय, आतंक एवं डर पैदा करने की योजना दिखाई दे रही है। 26 मई का दिन चुनने के पीछे कारण कुछ भी रहा हो परन्तु देश के किसान इस बात से आक्रोश में है कि किसान के नाम को बदनाम करने का अधिकार इन स्वयंभू, तथाकथित किसान नेताओं को किसने दिया है। किसान शार्मिंदा है कि वह राष्ट्र विरोधी कार्यों, विलासितपूर्ण रहन-सहन, राष्ट्रीय मान बिंदुओं का अपमान, विदेशी फंड़िग, आतंकवादी गतिविधियों का समर्थन और इतनी बड़ी कोविड़ त्रासदी के समय भी इतना स्वार्थी बन सकता है, ऐसी छवि निर्माण करने का पाप इन लोगों ने किया है।

भारतीय किसान संघ ने इस आंदोलन के आरम्भ से कुछ समय बाद ही आशंका प्रकट की थी कि यह किसान का आंदोलन नही हैे, आंदोलन कुछ अराजक तत्वों के हाथों द्वारा संचालित है।

अप्रैल-मई माह में ही एक बंगाल के किसान की 24 वर्षीय पुत्री के साथ सामूहिक बलात्कार और अंत में उसकी हत्या की घटना जो दिल्ली बार्डर पर घटी और 10-15 दिन तक पुलिस से छुपाया गया ताकि सबूत नष्ट किये जा सके। जिसके सबूत नष्ट करने मेे नेतागण लिप्त पाये गये है। यह तो एक घटना है, जो बाहर आ गई वह भी लड़की के पिता द्वारा पुलिस केस दर्ज कराने के कारण, न जाने क्या-क्या घटनाएं/काण्ड यहां घटित हुए हंै, कई लोगों पर अपराधिक प्रकरण भी बने हैं। इससे भी आगे बढ़कर इन आंदोलनकारियों द्वारा बीच-बीच में आक्सीजन गैस टेंकर्स को रोकना, एम्बूलेंस मंे गंभीर रोगियों से बदसलूकी करना, एक-एक सप्ताह तक अलग-अलग झुण्ड आंदोलन स्थल पर बुलाना, वापस जाना, कोरोना की गाईडलाईन को नहीं मानना, हिसार मंे कोविड़ अस्पताल का विरोध करना जैसी अवांछनीय हरकतों के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना बीमारी के विस्तार में भी बड़ी भूमिका निभाई है। पंजाब में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा कोविड़ ग्रस्तों की सहायता के लिए रक्तदान शिविर का विरोध करके रक्तदान नहीं होने देना, इन सब कृत्यों को शांतिपूर्ण आंदोलन का हिस्सा तो नहीं कहा जा सकता। आंदोलन स्थल पर सेकड़ों किसानों की मौत भी हो चुकी है।

जिन 12 राजनैतिक दलों ने इस काले दिवस वाले कार्यक्रम के समर्थन की घोषणा की है, उनको भी यह स्पष्ट करना चाहिए कि क्या वे इस आंदोलन में घटित शर्मनाक, राष्ट्रविरोधी एवं अपराधिक घटनाओ का भी समर्थन करते है? देश का आम किसान जानना चाहता है कि लाचार किसानों के नाम को बदनाम करने का ठेका इन लोगों को किसने दे दिया।

इसलिए भारतीय किसान संघ आम जनता से निवेदन करना चाहता है कि इन हरकतों में देश के आम किसान को दोशी नहीं ठहराया जावे। देशभर के किसान संगठनों के कार्यकर्ता इस महामारी में अपने-अपने स्थलों पर ग्रामीणों में जन जागरण, भूखे-प्यासे गरीब की दैनिक आवष्यकता पूर्ति, औषधि-उपचार की व्यवस्था में लगा हुआ है।

यहां भारतीय किसान संघ केन्द्र सरकार का भी आहवान करता है कि केवल हिंसक आंदोलनकारियों के अलावा भी देशभर में किसानों के मध्य आंदोलनात्मक एवं रचनात्मक कार्य करने वाले अन्यान्य किसान संगठन और भी हैं, उनकी केन्द्र द्वारा अनदेखी कब तक की जायेगी, उनको बुलाकर आम किसान की चाहत एवं उससे जुड़ी कठिनाईयों पर क्यों नही वार्ता की जाती ?


बद्रीनारायण चौधरी
महामंत्री, भारतीय किसान संघ
09414048490

पूछेगा देश, आखिर क्यों?

  • 26 जनवरी 2021 को ट्रेक्टर रैली के लिए अड़ियल रूख अपनाया गया, आखिर क्यों?
  • बार-बार दिल्ली पुलिस द्वारा नकारने पर भी ट्रेक्टर परेड़ की अनुमति या धमकी का प्रयास, आखिर क्यों?
  • दुश्मन देशों को आनन्द देने वाली हरकतों का बार-बार प्रयास किया जाता है, आखिर कब तक?
  • कृषि कानूनों की आड़ में गणतंत्र का विरोध, बहुत कुछ मुखौटे हटा गया, परन्तु आगे क्या?
  • नेतृत्व विहीन भीड़ एकत्र कर दिल्ली विजय, लाल किला फतह, तिरंगे का अपमान अब और आगे क्या?
  • कौन लोग हैं जो चाहते है कि किसान का खून बहे, गोली चले, लाठियां चले, फिर गिद्व भोज हों, निजी एवं सार्वजनिक सम्पत्तियां नश्ट की जावें, विश्व के सामने भारत की छवि धूमिल की गई, महिला पुलिस पर जानवरों की तरह प्रहार हुए, इनके पीछे कौन है?
  • हल वाले हाथों में भाले-बरछियां पकडाई गई, तलवारें लहराई गई। आखिर किसके विरोध में?
  • इस अक्षम्य अपराध के लिए दायी पापियों को माफी मांगने पर क्षमादान दे दिया जावें, क्यों?
  • गत दो माह से नित्य शडयंत्रों के बावजूद, तथाकथित किसान नेताओं को ये लोग दिखाई नहीं दे रहे थे। आखिर क्यो?
  • जवानों को किसानों के बच्चे बतलाने वालों के द्वारा उन बच्चों पर ही ट्रेक्टर चढ़ाने, कुचलने का कुकृत्य किया जा रहा था, आखिर अब तो किसान नेता स्वीकार कर लेवें कि उनके पीछे कोई राष्ट्रद्रोही तत्व हैं, अब भी नही स्वीकार करेगें तो फिर कब?
  • दिल्ली पुलिस द्वारा बार-बार पाकिस्तानी टवीट्र हंेण्डल (308) ज्ञात होने पर सावधानी की चेतावनी देने के बावजूद किसान नेताओं के दम्भपूर्ण वक्तव्य आते रहें परन्तु अब?
  • भोले-भाले किसानों के कंधों पर पांव रखकर अपना कद बढ़ाने/एजेंडा लागू करने की खूब हो गई नेतागिरी, क्या देशभर के किसान से अब भी चाहिए सहयोग/सहानुभूति?
  • प्रश्न  तो खड़े होगें और सफाई भी दी जायेगी, क्या किसान के नाम पर लगे धब्बे को धोया जा सकेगा? अन्नदाता को आतंकी के बराबर बैठा दिया, आखिर कारण तो होगा, क्यो?
  • भारतीय किसान संघ, जून 2020 से ही कहता आया है कि इन कानूनों को संशोधित करें और न्यूनतम समर्थन मूल्य का कानून बने, परन्तु हम ऐसे नेतृत्व विहीन, हिंसक आंदोलन से दूर रहते है।  इस आंदोलन के नेतृत्त्व द्वारा जिस प्रकार मांगे बदलते गये और कानून वापसी पर आकर अड़ गये, तब स्पष्ट हो गया था कि हारे हुए राजनैतिक विपक्ष की हताषा, किसान नेताओं के बे्रनवाश और प्रसिद्वि के लोभ में नेता बनने के लालच में किसान से गद्यारी होने लगी है, तब कभी मीठी भाशा में  और कभी कड़वी भाषा में सावधान करने का प्रयास भी भारतीय किसान संघ द्वारा किया गया। परंतु धीरे-धीरे स्पष्ट होने लगा कि यह कथाकथित नेतृत्व कुछ ओर ही परिणाम चाहता है, समाधान नहीं। वार्ता के रास्ते बंद कर दिए, सर्वोच्च न्यायालय की कमेटी का बहिष्कार किया। फिर ट्रेक्टर परेड़ और आगे संसद मार्ग पर मार्च एवं संसद के घेराव की घोशणा, आखिर क्यों?
  • इन सभी इवेंन्टस से पता चलता है कि गरीब किसानों का हित इनकी योजना में नहीं है, इनकी दृष्टि तो आगामी चुनाव पर दिखाई देती है। परन्तु विश्वासघात किसान के साथ क्यांे?
  • खुली चेतावनी दी जाने लगी, धमकियां दी गई, किसान को जैेसे आतंकी के रूप में प्रस्तुत कर सभी सीमाऐं लांघी गई। लेकिन ट्रेक्टर परेड़ का परिणाम देखकर और भी अधिक आश्चर्य हुआ कि योजनाबद्व आये, दण्डे-राड़-तलवारों के साथ पुलिस की गाड़ियों के शीशेे तोड़ने, पत्थर एवं डंडे फेककर मारना, आक्रमक तेवर अख्तियार किया गया, आखिर क्यों? जबकि पुलिस ने संयम से कार्य लिया। परन्तु अब उन सभी का मुखौटा उतर गया, जो पीछे से रिमोट से सारा खेल खेल रहे थे। जवाब तो किसान नेताओं से पूछेगें, आखिर क्यों?
  • भारतीय किसान संघ, दिल्ली पुलिस के धैर्य एंव संयम के लिए साधुवाद देता है, परन्तु सरकार एवं इंटेलिजेंस एजेंसीज की कमजोरी कहें या आंदोलन को लम्बा खीचने की मजबूरी, देशवासियों की समझ में नहीं आयी, इसलिए अराजक तत्वों को हिंसक खेल खेलने की छूट की निन्दा भी करता है। इस अपराध में लिप्त तथाकथित नेताओं के अतीत की भी जांच हो ताकि दोबारा देष के किसानों के साथ खिलवाड़ करने का कोई दुस्साहस नहीं कर सके।
  • इन किसान नेताओं ने सरकार के साथ केवल वार्ता का अभिनय किया, निगाहें तो 2024 तक बैठकर लोकसभा चुनावों पर थी। सरकार का डेढ – दों वर्षो के लिए कानून स्थागित करनेे और बैठकर समाधान पर चर्चा का प्रस्ताव भी इन्होनें ठुकरा दिया, जो दुर्भाग्यपूर्ण था। अब हम केन्द्र सरकार से आग्रह करते हैं कि हमारी पुरानी मांग पर पुनः विचार करें और कृषि कानूनों में समुचित सुधार, न्यूनतम समर्थन मूल्य बाबत कानून एवं अन्य लंबित समस्याओं पर सार्थक समाधान हेतु सरकारी पक्षकार, किसान प्रतिनिधि, कृषि अर्थषास्त्री, वैज्ञानिक एवं तज्ञ तटस्थ लोगों की सक्षम समिति गठित की जाये ताकि किसान भी देश के साथ आत्मनिर्भर भारत का भागीदार बन सके।

                                देश के हम भंडार भरेगें,  लेकिन कीमत पूरी लेगें