Bharatiya Kisan Sangh

किसानोमें काम करनेवाला, उनका संघटन करनेवाला अखिल भारतीय संघटन, ऐसी भारतीय किसान संघकी पहचान है। पूरे देशभरमें सभी प्रांतोमें किसान संघ का कार्य है। कुछ प्रांतोमें तो उसका प्रभाव है। किसान संघने तय किया हुआ कार्यक्रम अथवा की हुआ कोई माँग, वहाँका राज्यशासन भी दुर्लक्षित कर नही सकता।

आंदोलन, संघटन और प्रशिक्षण यह तीन पैलू किसान संघके कार्यका आधार है। उसमेंसे आंदोलन यह नित्य करनेकी बात नही, वह प्रासंगिक है। कोई विशेष विदुपर गहरी नजर रखना है, शासनकी ओर कुछ समस्या ले जाना है, कोई माँग करना है अथवा किसानोकी भलाई के दृष्टिसे, कुछ निर्णय लेने हेतु स्वायत्त संस्था या सरकारको बाध्य करना है, तो आंदोलनात्मक कार्यक्रम होते रहते है। आंदोलन करना आवश्यक होता है कभी कभी आंदोलन ग्रामपंचायत स्तरपर भी गावगावमें होते है। उसमे समाज सहभागी होना जरुरी रहता है। इसीलिये संघटन आवश्यक है । इस कारण ही संघटन मजबूत करना, निश्चित वैचारिक धारणासे खडा करना यह भारतीय किसान संघ का प्रथम कर्तव्य है।

संघटनमें काम करनेवाले कार्यकर्ता केवल भीड नही है। संघटनके ध्येय-धोरण-कार्यपध्दती आदीकी विस्तृत जानकारी रखनेवाला कार्यकर्ता चाहिये । कार्यकी योग्य दिशा जाननेवाला कार्यकर्ता चाहिये। अपने अपने क्षेत्रमें कार्यकी जानकारी पहुँचनी चाहिये । इसलिये कार्यकर्ताओंका प्रशिक्षण होना जरुरी रहता है। प्रशिक्षित कार्यकर्ता यह संघटनका बल है। इसीकारण ग्राम, तहसील, जिला, प्रांत देश आदि विविध सतहपर सातत्त्यसे प्रशिक्षण वर्ग चलते रहते है।

असी नियोजनबध्द कार्यशैली यह जिसका अंग है, ऐसे भारतीय किसान संघने वर्षभरमें चार उत्सव संपन्न करनेका निर्णय लिया है।

१) स्थापना दिन ४ मार्च

२) किसान दिन-भगवान बलराम जयंती (भाद्रपद शुध्द षष्ठी)

३) गौमाता पूजन (अश्विन वद्य द्वादशी)

४) भारतमाता पूजन (२६ जनवरी)

भारतीय किसान संघ का आरंभ एक अर्थसे विदर्भमें रहनेवाले एक प्रगत किसान श्री बाबूरावजी भैद इन्होने किया। यवतमाल जिला में दारव्हा गाव है । वहाँके वे निवासी थे। हर बात लिखित रुपमे रखना यह उनका रुची का विषय था। मान लो आज दोपहरमें ३ से ४ के बीच बारीश आयी । तुरन्त वे अपने डायरीमें उसे लिखित रुपसे शाबित करते थे । कितना मिलिमीटर, जोरदार की मुरोनी ऐसी भी जानकारी उनके पास रहती थी। बीज बोनेका दिनांक, निंदन कब किया, कितना माल हुआ, कितना बेचा, कितना रखा, जैसी सभी सभी प्रकारकी जानकारी लिखित रुपमें उनके पास रहती थी। वे स्वयं रखते थे। कृषिविषयक पूरी जानकारी उनके पास थी । साठ साल तक की जानकारी उन्होने एकत्रित की थी। उन्होने कुछ पुस्तके भी लिखी थी। स्वाभाविक रुपसे इस पूरी जानकारीका लाभ उनके आजू-बाजूमें रहनेवाले सभी किसान बंधुओंको मिला। इस वर्ष कौनसे नक्षत्र में कितनी बारीश आयेगी, इसका भविष्य वे बताते थे। और आश्चर्य की बात याने उन्होने बताया हुआ अंदाज, भविष्य बिलकुल सही होता था। बारीश का अंदाज लेते हुओे, कौनसा उत्पादन लेना चाहिये, उसका चयन होता था।

इस प्रकारसे उस क्षेत्रमे रहनेवाले किसान बंधुओंको लाभ होने लगा और किसान बंधु एकत्रित आना शुरु हुआ। उस माध्यमसे एक छोटा संघटन निर्माण हुआ । स्वयंम् बाबुरावजी भैद यही उसके प्रमुख थे। यह समय साधारणत: १९७१ का है । संघटन निर्माण हुआ किन्तु वह उस प्रदेशतकही सीमित रहा। संघटन का योग्य पध्दतीसे रजिस्ट्रेशन हुआ। उसमाध्यमसे किसानोंकी सभा, एकत्रिकरण, संमेलन, आंदोलन ऐसे भिन्न भिन्न कार्यक्रम होना शुरु हुआ। जनताका बहुत अच्छा समर्थन मिलने लगा १९७५ साल आया और सब चित्र बदल गया। उस समयके शासनने आपातकालीन स्थिती की घोषणा की। परिणामवश अनेक अच्छे कामोंमे बाधा आयी। अच्छे कार्य बंद हो गये। उसमे इस कार्यपर भी परिणाम हुआ। काम एकसाथ थंडा हुआ। अनेकानेक कार्यकर्ता बंधु जेलमें बंदिस्त हुऐ । सभीका नाइलाज हो गया। काम बंद हुआ।

१९७७ में आपातकालीन स्थिती समाप्त हुआ । फिरसे कार्यकर्ता बंधु धीरे धीरे सक्रीय हुओ। कार्यकर्ताओंके विचार- विमर्श से ऐसा प्रतीत होने लगा की किसानोंका एक अखिल भारतीय संघटन होना चाहिए । धीरे धीरे यह विचार निश्चित हुआ। तत्पश्चातही ४ मार्च १९७९ को राजस्थान प्रांत स्थित कोटा गाँव में सभी किसान बंधु और कार्यकर्ता गण एकत्रित बुलाये गये। श्रध्देय श्री दत्तोपंतजी ठेंगडी इनका मार्गदर्शन सबको मिला और अखिल भारतीय स्वरुपका किसानोंका संघटन ‘भारतीय किसान संघ’ इस नामसे काम शुरु हुआ । यही भारतीय किसान संघ का स्थापना दिन उस कार्यक्रममें स्वयम् ठेंगडीजीने कहा-

“जागृत, स्वयंप्रेरित, संघटित किसान और कामगार (श्रमिक) यही इस देश के सही भाग्यविधाता है। देशमें आमूलाग्र परिवर्तन यही लोग ला सकते है। उसीमेंसे देश परमवैभव को पहुँचेगा। इसी ध्येयसे किसान संघ की स्थापना हो रही है।”

उसी सभामें किसान संघके पहले अखिल भारतीय अध्यक्ष इस नातेसे श्री पुरुषोत्तमदासजी भाटिया इनका चयन हुआ । अपने मार्गदर्शक भाषणमें उन्होने कहा-

“भारत देश गरीब है, इसका कारण यहाँका किसान गरीब है। इसलिये यदि भारतको समृध्द कराना है, तो यहाँके किसानोंको समृध्द कराना होगा। दुर्दैवसे, स्वातंत्र मिलनेके पश्चातभी गरीबीमें सातत्यसे वृद्धिही हो रही है ।

यहाँकी अर्थव्यवस्थाका आधार मूलत: कृषि है। कृषि विकासपरही भारतके अन्य उद्योग, व्यवसाय इनकाभी विकास निर्भर है । भारतके आर्थिक विकासका मार्ग, इस देशके सात करोड खेतोंसे जाता है । यह विकासका क्रम नीचेसे-उपर जानेवाला है। उसी भाषणमें वे आगे कहते है –

देश की गरीबी दूर करनेका प्रयास गाँवसे शुरु होना चाहिये। हर व्यक्तिको गाँवमेही काम मिलेगा औैसी व्यवस्था होनी चाहिये । यह व्यवस्था हुी तो शहरके तरफ कामके लिये जानेकी कोई आवश्यकता नही रहेगी। शहरके तरफ जानेवाले किसानोंकी संख्या निश्चितही कम होगी। देशमें स्थित दस करोड किसान परिवार संघटित करनेके लिये हमें भगीरथ प्रयत्न करने होंगे। इस देशमें जाती, भाषा, पध्दती, रिवाज अलग अलग है। साथही खेती करनेकी पध्दती भी अलग अलग है वह पध्दती उस उस क्षेत्रकी मिट्टी पानी, वायुमंडल इनपर निर्भर है।

किन्तु, इस देशमें कई शतकोंसे, हजारो वर्षोंसे सांस्कृतिक जीवनका सूत्र सभीमें समान है। सांस्कृतिक परिवेश शाश्वत है। उसीके कारण विविधता होते हुए भी एकता है। इसलिये यह कार्य करनेका निश्चय हम सभीने करना चाहिये। उसके लिये हमें हर किसानके पास जाकर, उसे जागृत करना होगा। आज, किसान यंत्रवत हुआ है। उसकी मानवता नष्ट हुआ है उस किसानमें फिरसे स्वाभिमान जगाना होगा किसानको सन्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त होनी चाहिये। एक-एक किसान जागृत हुआ तो देश जागृत होगा यही हमारा ध्येय है।”

किसानोके जीवनमें, उनके जीवनको दिशा देनेवाला, उनको एकत्रित लानेवाला, देशके वैभवका मार्ग निश्चित करनेवाला ऐसा मछत्त्वका दिन याने किसान संघ का स्थापना दिन है ।

यह दिन उत्सवके रुपमें हमने मनाना चाहिये। किसान संघ का कार्य बढानेकी उम्मीदसे मनाना चाहिये। किसान बंधुओ में चैतन्य निर्माण होना चाहिये। I

कार्यक्रम अलग अलग ढंगसे ले सकते है। स्थान-स्थानपर जो अनुकूलता है, स्थानिक परिस्थिती है, स्थानिक समस्याओंका विचार है, ऐसे सभी बातोंको ध्यानमें रखते हुओ, कार्यक्रम करने होंगे। इस निमित्तसे किसान बंधुओने एकत्रित आना यह अत्यावश्यक बात है। कुछ विशेष कार्यक्रम यदि नही लेना है, तो अपने सामान्य कार्यक्रम ले सकते है।

कार्यक्रम स्थलपर भगवान बलरामजीकी तसवीर किसान संघ के नामका फलक (बॅनर) लगाना। कार्यक्रमका स्वरुप तय लिखित रुपमे क्रम निश्चित करना। किसानोंसे जुड़ा राष्ट्रीय भाव निर्माण करनेवाला कोई गीत, कोई कार्यकर्ता तो अधिक अच्छा अच्छा वायुमंडल या माहोल तैयार होनेके लिये, उसका लाभ होता है गायक और गीत शुरुसेही निश्चित होना चाहिये । समाजमें रहनेवाले प्रतिष्ठित व्यक्ति वार्तापत्र  से संबंधित संवाददाता आदि लोगोंको तय करके निमंत्रित करना चाहिये।

भगवान बलरामका पूजन होनेके पश्चात, प्रास्ताविक, परिचय, उनका स्वागत, गीत, अध्यक्षीय भाषण, आभार प्रदर्शन,पसायदान ऐसा अनुक्रम लेकर कार्यक्रम संपन्न करना। इस दिये हुओ क्रम में अपनी आवश्यकतानुरुप परिवर्तन कर सकते है । आवश्यक है तो परिवर्तन अवश्य करना चाहिये।

स्थापना दिन को ‘समर्पण दिन’ करके मान्यता है। संघटन करना है, तो कार्यक्रम, प्रशिक्षण, आंदोलन ये सब काम करने पड़ते है। उस दृष्टिसे कार्यकर्ताओंको प्रवास करना होता है। कभी कभी कुछ बाते छपवा लेनी पडती है। कभी छायांकित प्रत (xerox) निकालना होता है। ऐसे छोटे-मोटे काम के लिये कई बार पैसा खर्च करना पड़ता है। ऐन समयके उपरभी कई बार खर्च होते रहता है। इसकेलिये पैसे की आवश्यकता तो होतीही है। यह खर्च कौन करेगा? स्वाभाविकरुपसे उसका निश्चित उत्तर है, की खर्च कार्यकर्ताही करेगा। इसलिये कोई अनुभवी या जेष्ठ कार्यकर्ताओंने इस भूमिका को अपने उदबोधनके  माध्यमसे बताना चाहिये। या, तो कार्यक्रमके पश्चात सूचनाओंकी माध्यमसे यह विषय स्पष्ट करना चाहिये तथा अर्थसहाय्य करनेका आवाहन करना चाहिये। पैसे लेते है, तो उसकी रसीद (पावती) देना चाहिये। घन संग्रह बिना रसीद न हो ।

स्थापना दिन के बहाने कुछ अलग उपक्रमोंका संकल्प हम कर सकते है। उदाहरणके लिये कुछ उपक्रम नीचे दिये है।

१) हर किसानके तरफ एक गैया रहेगी ऐसा प्रयास करना।

२) गाँवमें बरसनेवाला बारीशका पानी गाँवमेंही रहेगा इसका प्रयास करना।

३) कुओँका  जलस्तर बढानेका प्रयत्न करना।

४) खेत के बंधारेपर अच्छे पेड लगाना ।

५) जानवरोंके चराई के लिये गाँवमें जगह उपलब्ध करा देना । 

६) ग्रामपंचायत स्तरपर, जानवरोंके लिये पानी पीनेकी दृष्टिसे सार्वजनिक हौद का निर्माण करना और पानीकी व्यवस्था करना।

७) सहकार तत्त्वपर फसलकी आवागमन (ट्रान्सपोर्टेशन) की व्यवस्था करना । 

८) पूर्वापार जो बीज हम बोते थे, उसका वाण रक्षण करना, उसका उपयोग करके स्वयम्के लिये आवश्यक बीज तैयार करना।

९) कृषिसे संबंधित कोई लघु-उद्योग निर्माण हो सकता है क्या? इसका प्रयास करना।

१०) कृषि क्षेत्रमें होनेवाले विविध अनुसंधानोकी (Researches) जानकारी देना।

इसप्रकार, स्थापना दिन का विशेषत्त्व ध्यानमे रखते हुए, स्थान स्थानपर कार्यक्रम होने चाहिये, ऐसा प्रयत्न कार्यकर्ताओंने करना चाहिये। किसानोंके जीवनमें, इस ऐतिहासिक दिन का स्मरण निश्चित रुपसे होना चाहिये।

The Inspiration and founder of Bhartiya Kisan Sangh

The Late Shri Dattopantji Thengdi : श्री दत्तो पन्त जी ठेंगडी

The great sentinel of India’s freedom movement, national organizer, architect, thinker, visionary, writer, austere, sacrificer, national seer, honorable Shri Dattopant Bapurao Thengdi was born on 10th Nov 1920 in village Arvi of Wardha distt. in the Maharastra State of India. His father was honorable Shri Bapurao Dajiba Thengdi.

From childhood he was intelligent and hard working student who became committed for the national cause from very early age. In 1935 at a young age of 15 he was elected President of Arvi Taluka municipal high school. In this position he initiated the formation of a fund to help needy students. In 1935 itself he presided the “Vanar Sena” of the Indian National Congress at Arvi. To motivate the hut dwellers to join the national movement he worked amongst them and became governor of “Arvi Goani Jhuggi Jhopadi Mandal” in 1936. From 1936 to 1938 he worked as an active member of Hindustan Socialist Republican Army, Nagpur.

From early life he took to social service and the national cause. He took admission in Morris College and Law College of Nagpur and was awarded the degrees of MA and LLB respectively. From his student life since 1942 he became a Swayam Sevak of the RSS which had been the main source of inspiration for him. From 1942 to 1944 Thengdiji worked to develop organizations like Shri Vagmala Nanda. Society Kalicut, Arya Samaj Kalicut, Hindu Mahasabha, British Malabar Poor Home Kalicut. In 1955 established the Bhartiya Majdoor Sangh or BMS which developed literally from a tiny acorn in beginning to now a mighty oak. For more than 50 years he remained active for social and national awakening. To strengthen the creative fields of RSS he initiated the establishment of Bhartiya Kisan Sangh, Samajik Samrasta Manch, Sarva Panth Samadar Manch and the Swadeshi Jagran Manch and few more similar organizations. A lot credit goes to him for the effective functioning of majority of such bodies in India. Thengdiji also founded the Samskar Bharti and inaugrated Akhil Bhartiya Adhivakta Parisad, Bhartiya Vichar Kendra, Akhil Bhartiya Grahak Panchayat etc.

There may hardly be any national labour organization, Dalit Sangh, Railwaymens organization, farmers association, educational or literary association to which he had not given his earnest contribution. His whole life was embodiment of simplicity, steadfast commitment, studies, clarity of aim and vision. He has contributed 26 books in Hindi, 12 in English and 2 in Marathi. These books are testimony in print of his mission for the nationalist cause. His two books “Rashtra” and “Dhyepath par Kisan” are guiding light like Gita.

Shri Thengadi was a member of Rajya Sabha for a term. In 1969, He visited Soviet Russia and Hungary as member of a parliamentary delegation; in 1977 he went to Switzerland as a delegate to an ILO conference and also to the Second International Anti-apartheid Conference at Geneva. In 1979, he was invited to Yugoslavia by the Trade Union there to study that country’s labourization, and also by the USA to study the American trade union movement. The same year he also visited Canada and Britain on invitation. In 1985, Shri Thengadi led a Bharatiya Mazdoor Sangh delegation to china on the invitation of the All- China Federation of Trade Unions. He subsequently attended the Tenth Regional Conference of ILO at Jakarta, Indonesia, the same year, and also visited Bangladesh, Burma, Thailand, Malaysia, Singapore, Kenya, Uganda and Tanzania. More recently he participated in the Fifth European Hindu conference held at Frankfurt, Germany, in August 1992, and World Vision 2000 in USA.

Res. Shri Dattopant ji actively remained connected with many organizations as follows :

1950-51 – Organizational Secretary INTUC, MP Sangthan Mantri

1951-53 – Organizational Secretary Bhartiya Jan Sangh (M.P.)

1955 – Founded Bhartiya Majdoor Sangh

1956-57 – Organizational Secretary, Bhartiya Jan Sangh Dakshinmandal.

1964-70 – Member Rajya Sabha

1965-1966 – Member House Committee

1966-70 – Member Rajya Sabha Board of Vice President

Member people Industries Committee

1968-69 – Organiser, National Coordination Committee for Central Labour Organizations.

1970-76 – Member Rajya Sabha

1974 – Presides National Conference of Labour Organizations

1975 – Coordinatior National Labour Struggle Committee.

1976 – Coordinator national labour public struggle committee. (during emergency)

1979 – 4th March, establishes Bhartiya Kisan Sangh

1991 – Establishes Swadeshi Jagaran Manch