राज्य के किसानों को स्वावलंबी बनाने में जुटा भाकिसं, असम
कृष्ण कांत बोरा ,
भारतीय किसान संघ, असम
एक ओर जहां देश के कुछ किसान संगठन नये कृषि कानून को लेकर सरकार को कठघरे में खड़ा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर भारतीय किसान संघ (भाकिसं), की असम इकाई किसानों को स्वावलंबी और आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई तरह के कदम उठाते हुए किसानों की मदद कर रही है। भाकिसं, असम किसानों को आधुनिक खेती करने के लिए जहां प्रेरित कर रहा है, वहीं बेहतर खाद, बीज, सरकारी सहायता का बेहतर लाभ उठाने, कृषि उत्पादों को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बेचने के लिए प्रोत्साहित कर उनकी आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने का प्रयास कर रहे हैं।
इस कड़ी में भाकिसं, असम द्वारा राज्य के आठ जिलों के किसानों को “मिशन टू एक्सप्लोर स्मार्ट एग्री” के तहत गुवाहाटी का भ्रमण कार्यक्रम आयोजित किया गया है। यह कार्यक्रम गत 19 मार्च से आरंभ हुआ है। इसका समापन 27 मार्च को होगा। चयनित जिलों में मुख्य रूप से बंगाईगांव, कामरूप (ग्रामीण), पश्चिम कार्बी आंग्लांग, शोणितपुर, नगांव, मोरीगांव, नलबारी, बरपेटा शामिल हैं।
भाकिसं, असम के प्रदेश अध्यक्ष कुरुसार तिमुंग ने सोमवार को हिन्दुस्थान समाचार के साथ बीतचीत करते हुए कहा कि “मिशन टू एक्सप्लोर स्मार्ट एग्री” के तहत पहली बार बेहद पिछले हुए ग्रामीण इलाकों के किसानों को आधुनिक कृषि को समझने का मौका मुहैया कराया जा रहा है। उन्होंने बताया कि, औसत प्रत्येक जिले से कम से कम 10 गांवों के किसानों को गुवाहाटी का भ्रमण कराया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि कुछ जिलों जैसे पश्चिम कार्बी आंग्लांग जिला के ऐसे इलाकों के किसान हैं जिन्हें पहली बार गुवाहाटी पहुंचने का अवसर मिला और ऐसे कार्यक्रम का हिस्सा बन पाए। उन्होंने बताया कि किसानों के भ्रमण में स्थानीय आईसीएआर के अंतर्गत संचालित केंद्रीय वृक्षारोपण फसल अनुसंधान संस्थान (सीपीसीआरआई) नामक संस्था का भरपूर सहयोग मिला है।
उन्होंने बताया कि सीपीसीआरआई के कृषि वैज्ञानिकों ने जो शोध कार्य किया है, उसके बारे में किसानों को विस्तार से जानकारी देते हुए उसका लाभ उठाने का आह्वान किया। साथ ही वैज्ञानिकों ने अपने शोध क्षेत्र में तैयार विभिन्न प्रकार के उत्पादों जैसे नारियल, तामुल, दालचीनी, काली मिर्च, चॉकलेट समेत अन्य खेती एक साथ वैज्ञानिक तरीके से कैसे कर सकते हैं, इसके बारे में प्रायोगिक तौर पर समझाया। वैज्ञानिकों ने किसानों की आय बढ़ाने के लिए चॉकलेट की खेती कैसे की जाए, इस बारे में भी विस्तार से बताया।
वैज्ञानिकों ने तामुल के पत्ते का उपयोग करते हुए किस तरह से केचुआ खाद तैयार की जा सकती है, उस पर भी व्यावहारिक रूप से प्रकाश डाला। किसानों ने वैज्ञानिकों के सुझाओं पर अमल करने का आश्वासन दिया।
इस दौरान पश्चिम कार्बी आंग्लांग की एक महिला किसान कुमारी निलम चौधरी ने अपने अनुभव को साझा करते हुए कहा कि इस तरह का प्रोत्साहन मिलने से हमें नयी तकनीक और नयी खेती करने का लाभ मिलता है, जिससे हमारी आय में वृद्धि होगी। वहीं दूसरी ओर बंगाईगांव के एक युवा किसान तपन दास ने बताया कि वैज्ञानिक तरीके से की जाने वाली खेती को हम गांव-गांव तक पहुंचाएंगे, जिससे किसानों की आय को दोगुनी की जा सके। साथ ही उन्होंने कहा, एक ही जमीन पर पांच प्रकार की खैती कैसे की जा सकती है, इसको लेकर भी किसानों के बीच जागरूकता फैलाने की कोशिश करेंगे।
सीपीसीआरआई के एक वैज्ञानिक डॉ अल्पना दास ने कहा कि भाकिसं, असम द्वारा खेती को लेकर जो मुहिम चलाया गया है, वह किसान और वैज्ञानिक दोनों के लिए काफी लाभप्रद है। उन्होंने साथ ही कहा कि सही अर्थों में किसान विज्ञान से काफी दूर हैं। उन्हें साथ लाए बिना किसानों को भला नहीं हो सकता है। इस तरह के कार्यक्रम किसानों के लिए काफी सहायक सिद्ध होंगे।