चंदगड, दि. २७ सितंबर : बायसेफ अनुसन्धान इंस्टीट्यूट के वरिष्ठ शोधकर्ता संजय पाटिल ने कहा, कई पीढ़ियों से खेती किए जाने वाले पारंपरिक बीज यहां की कृषि की जीवनदायिनी हैं। वे भारतीय किसान संघ द्वारा आयोजित ‘पारंपरिक बीज संरक्षण एवं महत्व’ पर आयोजित कार्यशाला में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे। कार्यक्रम का आयोजन राम मंदिर में किया गया।

पाटिल ने कहा, “यद्यपि रासायनिक उर्वरकों और संकर बीजों का उपयोग करके हरित क्रांति का प्रयोग सफल रहा है, मानव शरीर पर इन खाद्य पदार्थों का प्रभाव पारंपरिक स्वदेशी है। इसलिए, पारंपरिक स्वदेशी बीज किस्मों को संरक्षित और खेती करना आवश्यक है।”

स्थानीय किस्मों का संरक्षण कर इसकी शुद्धता कैसे बढ़ाई जाए और अन्य किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए कम लागत पर खेती कैसे की जाए, इस पर मार्गदर्शन दिया। BICEF के पास धान, नाचनी और सब्जियों जैसी पारंपरिक फसलों की 350 किस्में हैं।

इसे किसान संघ के माध्यम से इच्छुक किसानों को नि:शुल्क देने का निर्णय लिया गया। भारतीय किसान संघ के सदस्य पंजीकरण अभियान की जानकारी दी गई।

इस अवसर पर वरिष्ठ किसान विठोबा गुलामकर, तुकाराम ओउलकर, जयराम गावड़े, महादेव पड़वले, अनिकेत मांद्रेकर, चंद्रकांत पाटिल, संदीप गावड़े, संजय पाटिल, गणपति पाटिल उपस्थित थे।